जयपुर
सीलिंग एक्ट से जुड़े मामले में तथ्य छिपाकर याचिका दायर करना याचिकाकर्ता को भारी पड़ गया। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए अदालत का समय बर्बाद करने और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए याचिकाकर्ता पर 25 लाख रुपए का जुर्माना ठोक दिया और आदेश दिया कि याचिकाकर्ता जुर्माना राशि को एक माह में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराए।
राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस अशोक गौड़ ने यह आदेश बारां निवासी कस्तूरचंद की याचिका को खारिज करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में नाराजगी जताते हुए कहा कि एक ओर बड़ी संख्या में पीड़ित पक्षकारों के मुकदमे लंबित हैं, दूसरी ओर कोर्ट को ऐसे लोगों का भी सामना करना पड़ रहा है जो फर्जी और तथ्य छिपाकर याचिकाएं पेश कर रहे हैं।
अदालत ने कहा कि पक्षकारों को मामले के प्रासंगिक व सही तथ्यों को बताना ही होगा। लेकिन मौजूदा याचिकाकर्ता ने अदालत से पूर्व में हुई न्यायिक प्रक्रिया के तथ्य को छुपाया। उसने यह नहीं बताया कि हाईकोर्ट में इस मामले में पूर्व में दायर याचिका खारिज हो चुकी है। ऐसे में यह याचिका बेवजह दायर की गई है जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग व समय की बर्बादी है। ऐसे मुकदमेबाजों से सख्ती से निपटने के साथ ही उन्हें हतोत्साहित करने की जरूरत है।
यह था पूरा मामला
अतिरिक्त राजकीय अधिवक्ता अक्षय शर्मा ने बताया कि सीलिंग एक्ट से जुड़े मामले में 1988 में याचिकाकर्ता के पिता देवीलाल रेवेन्यू बोर्ड में केस हार गए थे। रेवेन्यू बोर्ड के आदेश को उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। हाईकोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान 2000 में देवीलाल की मौत हो गई और उनके बेटे कस्तूरचंद पक्षकार बन गए। हाईकोर्ट ने जुलाई 2001 में उनकी याचिका खारिज कर दी।
तथ्य छिपाकर ले लिया यथास्थिति का आदेश
इसके बाद भी कस्तूर चंद अक्टूबर 2001 में वापस रेवेन्यू बोर्ड चला गया। रेवेन्यू बोर्ड ने 2009 में पुन: उसकी अपील खारिज कर दी।लेकिन उसने पुराने तथ्य छिपाकर 2009 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की और विवादित जमीन पर यथास्थिति का आदेश ले लिया। मामला सुनवाई पर आने पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि यह मामला पूर्व में तय हो चुका है और याचिकाकर्ता ने पूर्व के तथ्यों को छिपाकर याचिका दायर की है, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है. इसलिए याचिका को भारी हर्जाने सहित खारिज किया जाए।
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