बारां के सहरिया जनजाति क्षेत्र में कुपोषण के बदलाव में सार्थक बन रहा न्यूट्री गार्डन

न्यूट्री गार्डन में पैदा होने वाले फल और सब्जियों से पोषण ही नहीं मिल रहा, यह राजस्थान के बारां जिले में अज्ञानता के कारण पिछड़े सहरिया जनजाति समुदाय के लोगों की रूढि़वादी सोच में बदलाव भी ला रहा है, जिससे वे पोषण का महत्व समझने लगे हैं। राजस्थान के ऐसे प्रत्येक इलाके में न्यूट्री गार्डन बनें तो काफी हद तक कुपोषण जैसी समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

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बारां (राजस्थान)

राजेश खंडेलवाल  


हमारे यहां हरी सब्जी पहले कभी-कभार ही बनती थी। आंगनबाड़ी केन्द्र पर एक दिन आए न्यूट्री गार्डन के काउन्सलर ने हरी सब्जियों के फायदे समझाए। तब से हमारे घर पर एक समय नियमित हरी सब्जी बनने लगी है। यह कहना है, खुशियारा गांव की 22 वर्षीय बबीता सहरिया (बदला हुआ नाम) का।

दो बच्चों की मां बबीता का यह भी कहना है कि पहले उसका 3 साल का बेटा अति कुपोषित था, जो ठीक से चल नहीं पाता था। अब खुद खाना खा लेता है और चलने-फिरने भी लगा है, हालांकि वह अभी पूरी तरह से कुपोषण मुक्त नहीं हुआ है, लेकिन अब वह अति कुपोषण से कुपोषण की श्रेणी में आ गया है। बबीता की बातों से सहमति जताते हुए उसकी सास का कहना है कि बहु को आंगनबाड़ी केन्द्र पर मिली हरी सब्जियों से पोषण की जानकारी काफी फायदेमंद साबित हो रही है।

इसी तरह एक बेटे और दो बेटियों की मां और पहाड़ी गांव निवासी 26 साल की विमला सहरिया (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसकी छोटी बेटी शारीरिक रूप से काफी कमजोर थी। इस कारण वह आए दिन बीमार रहती थी, लेकिन जब से उनके घर में हरी सब्जियों का उपयोग बढ़ा है, तब से उसकी बेटी की शारीरिक स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है। वह अब कुपोषण से भी मुक्त हो चुकी है।

आर्थिक रूप से कमजोर और अज्ञानता के कारण सहरिया जनजाति के लोगों की सोच रुढि़वादी रही है। इससे इनके घरों में हरी सब्जियों का प्रयोग ना के बराबर होता है। हरी सब्जियों से मिलने वाले पोषण के प्रति इन लोगों में जागरूकता लाने के लिए ही बारां जिले के सहरिया जनजाति प्रभावित शाहाबाद ब्लॉक के खुशियारा गांव में 25 अगस्त, 2022 को न्यूट्री गार्डन लगाया गया। इससे  केलवाड़ा और समरानिया परिक्षेत्र के 64 आंगनबाड़ी केन्द्रों को जोड़ा गया, जो 15 किलोमीटर के दायरे में आते हैं।

नीति आयोग से संबंद्ध इस न्यूट्री गार्डन के संचालन की जिम्मेदारी बारां के ही प्रगति संस्थान को मिली, जिसके काउन्सलर अनिल राठौर और कम्युनिटी मोबिलाइजर तुलसीराम प्रजापति आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा सहयोगियों और लाभार्थियों के साथ उनके परिजनों को न्यूट्री गार्डन और उसमें पैदा की जाने वाली हरी सब्जियों की जानकारी व उससे मिलने वाले पोषण के बारे में समझाते हैं।  उन्हें यह भी बताया जाता कि हरी सब्जियों में आयरन की मात्रा ज्यादा होने से गर्भवती महिलाओं व धात्री माताओं के साथ ही बच्चों में खून की कमी नहीं आती है।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूट्री गार्डन का महत्व और हरी सब्जियों से मिलने वाले पोषण की जानकारी देता काउंसलर अनिल राठौर।

नियमित हरी सब्जी खाने से बढऩे लगा है बच्चों का वजन
समरानिया गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र प्रथम की कार्यकर्ता विमला पंकज बताती हैं कि उनके यहां 121 बच्चे पंजीकृत हैं। न्यूट्री गार्डन से मिलने वाली सब्जियां लाभार्थियों को बांटी जाती है, जिन्हें खाने से कई बच्चों का वजन बढ़ा है। वहीं मुर्गीफार्म आंगनबाड़ी केन्द्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज बताती हैं कि उनके यहां 2 साल की बच्ची का वजन 300 ग्राम बढ़ गया है।

समरानिया गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र पर बच्चों को हरी सब्जियों के फायदे बताती आंगनबाड़ी कार्यकर्ता विमला पंकज।

घरों पर बनने लगे हैं किचिन गार्डन 
केलवाड़ा गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र 5 की कार्यकर्ता उषा वैष्णव कहती हैं, हरी सब्जियां खाने से गर्भवती महिलाओं को खून की कमी जैसी समस्या से छुटकारा मिला है। उन्होंने केन्द्र से जुड़ी महिलाओं को भी कई बार न्यूट्री गार्डन की विजिट कराई है और महिलाओं को अपने घरों पर किचिन गार्डन बनाने को प्रेरित किया है। वे बताती हैं कि क्षेत्र में कई आंगनबाड़ी केन्द्रों के साथ ही कई लाभार्थियों ने अपने घरों पर किचिन गार्डन बनाए भी हैं।

केलवाड़ा गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र पर बच्चों को पढ़ाती आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उषा वैष्णव।

जैविक खाद ही करते हैं उपयोग
न्यूट्री गार्डन के काउन्सलर अनिल राठौर बताते हैं कि गार्डन में टमाटर, मिर्च, भिंडी, करेला, लॉकी, खीरा, टिंडा, अरबी, चौलाई, बैंगन, कद्दू, मूली, प्याज, खीरा, ककड़ी, पत्ता गोभी, गाजर, चुकंदर, सेम फली, लहसुन, सौंफ, मटर, पालक, मैथी, ग्वार फली, सलगम, फूलगोभी आदि पैदा की जाती है। इन सब्जियों को पैदा करने में जैविक खाद का ही उपयोग किया जाता है। उपज को रोगों से बचाने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की समय-समय पर सलाह लेकर काम किया जाता है।

अति कुपोषित व कुपोषित बच्चों की संख्या घटी
प्रगति संस्थान के अध्यक्ष ललित वैष्णव बताते हैं कि शुरूआत में 64 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर 37 बच्चे अति कुपोषित तथा 168 बच्चे कुपोषित थे, जबकि अब अति कुपोषित 10 और कुपोषित बच्चों की संख्या घटकर 75 रह गई है। ऐसा चिह्नित बच्चों के अभिभावकों से निरंतर संवाद और न्यूट्री गार्डन से पोषणयुक्त हरी सब्जियों के वितरण से संभव हो पाया है। काउन्सलर व कम्यूनिटी मोबिलाइजर को भी नियमित इनके सम्पर्क में रहने और पोषणयुक्त हरी सब्जियां वितरित करने को कहा गया। 

वैष्णव बताते हैं कि आंगनबाड़ी केन्द्रों का सर्वे कर गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं और अति कुपोषित व कुपोषित बच्चों को चिह्नित किया। इतना ही नहीं न्यूट्री गार्डन को लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा सहयोगियों को प्रशिक्षण भी दिलाया गया। साथ ही उन्हें लाभार्थियों को अपने घरों में किचिन गार्डन तैयार कराने को प्रेरित किया। फिलहाल दर्जनभर आंगनबाड़ी केन्द्रों के साथ ही दो दर्जन से अधिक लाभार्थियों के घरों में किचिन गार्डन लगे हैं। इतना ही नहीं, न्यूट्री गार्डन पर आंगनबाड़ी कार्यकताओं, आशा सहयोगनियों और लाभार्थी महिलाओं का सामूहिक भ्रमण, गोद भराई, पोषण मेला जैसी  गतिविधियां भी संचालित की जाती हैं, जिससे लाभार्थियों को पोषण के फायदे और उसके अभाव में होने वाले नुकसानों के बारे में समझाया जाता है।

मजदूरी ही सहरियों की आजीविका का प्रमुख जरिया
राजस्थान के बारां जिले के किशनगंज और शाहाबाद ब्लॉक में कुल आबादी की करीब 40 फीसदी जनसंख्या सहरिया जनजाति की है। इनकी संख्या करीब 1 लाख 30 हजार है। शाहाबाद में 236 व किशनगंज में 213 गांव हैं। इनमें से शाहाबाद के 100 और किशनगंज के 128 गांवों में सहरिया समुदाय के लोग रहते हैं। पहले इनकी आजीविका का साधन मात्र वन उपज हुआ करती था, लेकिन अब मजदूरी ही इनकी आजीविका का प्रमुख जरिया है।

क्यों होते हैं कुपोषण के शिकार
सहरिया समुदाय के लोग शिक्षा के साथ ही पोषण के क्षेत्र में होने वाले फायदों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस इलाके में गर्भवती महिलाओं व धात्री माताओं को पर्याप्त पोषण की उपलब्धता नहीं होने से उनमें होने वाली खून की कमी के कारण शारीरिक कमजोरी काफी आती है। इसका प्रभाव इनके बच्चों पर भी पड़ता है और वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। इन्हें इससे मुक्ति दिलाने के लिए ही नीति आयोग ने शाहाबाद ब्लॉक के खुशियारा में न्यूट्री गार्डन का संचालन किया है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को इसका कार्यकारी विभाग बनाया है, जिसे कृषि विज्ञान केन्द्र, अंता तकनीकी सहयोग देता है। न्यूटी गार्डन के निरीक्षण की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग की है तो उद्यान विभाग कृषि आधारित सहयोग करता है। न्यूट्री गार्डन के सफल संचालन में जिला प्रशासन का भी अपेक्षित सहयोग करता रहता है।

बारां जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर यह न्यूट्री गार्डन खुशियारा के राजकीय बालिका जनजाति आवासीय विद्यालय के मैदान में बना है, जहां घास व खरपतवार को हटाने के साथ ही पानी की व्यवस्था के लिए टयूबवैल लगवाया गया। इसके चारों तरफ तारों से घेराबंदी भी कराई गई।

केवीके अंता ने उपलब्ध कराए बीज व पौधे
कृषि विज्ञान केन्द्र, अंता की विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ. गीतिका शर्मा बताती हैं कि न्यूट्री गार्डन खुशियारा के लिए बीज, पौध उपलब्ध कराने के साथ ही फू्रट प्लांट भी तैयार कराया है। समय-समय पर आवश्यक सलाह भी दी जाती है। डॉ. गीतिका का मानना है कि ऐसे न्यूट्री गार्डन और भी संचालित हों ताकि शाहाबाद व किशनगंज क्षेत्र में रह रहा पूरा सहरिया समुदाय लाभान्वित हो सके। इसके लिए जिला प्रशासन से आग्रह भी किया जाएगा। 

हर ब्लॉक में संचालित हों ऐसे न्यूट्री गार्डन
महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी रहे रवि मित्तल कहते हैं कि हर ब्लॉक में कम से कम एक न्यूट्री गार्डन हो ताकि जरूरतमंद लाभान्वित व प्रेरित हो सकें। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को एक बार आग्रह भी किया था।

ऐसे मिलेगा न्यूट्री फसलों को बढ़ावा
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक रहे नंद बिहारी मालव का कहना है कि न्यूट्री गार्डन से पोषण मिलने के साथ ही लोगों को सीखने के लिए भी बहुत मिलता है। इससे किचिन गार्डन के साथ ही न्यूट्री फसलों को भी बढ़ावा मिलेगा। उनका भी मानना है कि न्यूट्री गार्डन हर ब्लॉक में होने ही चाहिए। 

सहरिया समुदाय समझने लगा है पोषण का महत्व
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सम्पत नागर बताते हैं कि खुशियारा में न्यूट्री गार्डन बनने के साथ संबंधित परिक्षेत्र में लाभार्थियों को स्वास्थ्य लाभ मिला है। इससे सहरिया समुदाय के लोगों की सोच बदली है और पोषण का महत्व समझने लगे हैं। शाहाबाद ब्लॉक के शेष क्षेत्र के साथ ही किशनगंज ब्लॉक में भी ऐसे न्यूट्री गार्डन बनें तो अच्छा रहेगा। वे बताते हैं कि इसके लिए जिला कलक्टर से भी अनुरोध किया जाएगा।

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