इलेक्टोरल बॉन्ड असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, SBI से 6 मार्च तक मांगा हिसाब

नई दिल्ली 

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) से पहले उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनावी बॉण्ड (Electoral Bond) को अवैध करार देते हुए इस पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने एसबीआई (SBI) और चुनाव आयोग (Election Commission) को इसकी जानकारी सावर्जनिक करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि SBI सारी जानकारी 6 मार्च, 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं है सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड की बिक्री बंद करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिया कि 5 साल पहले इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद से उसने किस पार्टी को कितने चुनावी बॉन्ड जारी किए हैं, इसकी जानकारी मुहैया कराए एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को देना होगा शीर्ष अदालत ने एसबीआई को यह भी निर्देश दिया है कि वह​ चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश करे

आपको बता दें कि सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था फैसला सुरक्षित रखने के ठीक 4 दिन बाद 6 नवंबर को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी 29 ब्रांचों के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू किए थे। 6 नवंबर से 20 नवंबर तक इश्यू किए गए बॉन्ड्स में 1000 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा इनकैश कराए गएचुनावी बॉन्ड का विवरण भी प्रस्तुत करना होगा वहीं इनकैश नहीं कराए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की राशि खरीदार के खाते में वापस करनी होगी सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट दानदाताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिया जाने वाला चुनावी चंदा पूरी तरह से ‘लाभ के बदले लाभ’ की संभावना पर आधारित होता है

केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी चुनावी बॉन्ड किसी भी व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है या व्यवसाय, संघ या निगम जिसका गठन या स्थापना भारत में हुई है, द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-कम्प्लायंट अकाउंट के माध्यम से खरीदा जा सकता था

राजनीतिक दलों को इन्हें जारी होने से 15 दिन के भीतर इनकैश कराना होता था इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले डोनर का नाम और अन्य जानकारी दर्ज नहीं की जाती थी और इस प्रकार दानकर्ता गोपनीय हो जाता था किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बॉन्ड की संख्या पर कोई लिमिट तय नहीं थी केंद्र ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, कंपनी अधिनियम 2013, आयकर अधिनियम 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 में संशोधन किए थे संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया गया था

ये है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितनी मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।

नई हवा’ की  खबरें  नियमित और अपने मोबाइल पर डायरेक्ट प्राप्त करने  के लिए व्हाट्सएप नंबर  9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें

जब सुप्रीम कोर्ट के वकील ने चलती कार में ही पेश करनी शुरू कर दी दलील, फिर ये हुआ

मुख्यमंत्री ने दी युवाओं को सौगात, कनिष्ठ सहायक के 3,552 पदों पर होगी भर्ती

करोड़ों कर्मचारियों के लिए खुशखबरी, PF पर बढ़ गया इतना ब्याज | जानें डिटेल

NPS को लेकर रिपोर्ट तैयार, एक निश्चित पेंशन की गारंटी दे सकती है सरकार

Deepfake के  खिलाफ मोदी सरकार सख्त, लोकसभा चुनाव से पहले उठा रही ये बड़ा कदम | देश के हर साइबर थाने में लगेगा ये स्पेशल टूल | जानें Deepfake से बचने के टिप्स

हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल का हुआ तलाक, 12 साल बाद टूटा रिश्ता, ये वजह आई सामने

Good News: अब नोएडा एक्सटेंशन तक दौड़ेगी मेट्रो, DPR मंजूर | जानिए नए कॉरिडोर में कहां होंगे ये 11 स्टेशन

नई हवा’ की  खबरें  नियमित  और अपने मोबाइल पर डायरेक्ट प्राप्त करने  के लिए  व्हाट्सएप नंबर  9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें