अब वकीलों को वरिष्ठता देने के प्रोसेस पर केंद्र सरकार ने जताया ऐतराज, ये बताईं बड़ी वजह

नई दिल्ली 

केंद्र सरकार ने पहली बार वकीलों को वरिष्ठता देने के मामले में कोर्ट के प्रोसेस पर कड़ा ऐतराज जताया है और  वरिष्ठता का गाउन देने की प्रक्रिया में सुधार संबंधी सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह फैसले (2017) में सुधार के लिए एक अर्जी दायर की है। इसमें केंद्र ने कहा है कि इस फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकि वरिष्ठता देने के लिए वकीलों का इंटरव्यू करना तथा उनके प्रकाशित लेखों का मूल्यांकन करना उचित नहीं है। केंद्र का तर्क है कि कोर्ट के मौजूदा प्रोसेस से वकीलों में अनावश्यक रूप से ईर्ष्या का भाव पैदा होगा।

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आपको बता दें कि वकीलों को वरिष्ठ वकील नामित करने की प्रक्रिया पूरी तरह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है। उच्च अदालतें हर एक साल बाद वरिष्ठ वकील नामित करती हैं। सरकार ने कभी कोर्ट के इस प्रोसेस में दखल नहीं दिया है; लेकिन पहली बार केंद्र ने कोर्ट के इस प्रोसेस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए एक अर्जी दायर की है और कहा है कि फैसले के कारण नई प्रणाली ने वरिष्ठता नामित करने की प्रक्रिया के सम्मान, गरिमा तथा गर्व को हल्का कर दिया है।

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केंद्र ने अर्जी में मांग की  है कि परफॉर्मेंस आधारित पुरानी प्रणाली पर मूल्यांकन करने तथा फुल कोर्ट में गोपनीय मतदान से वरिष्ठ नामित करने की प्रणाली पर वापस लाया जाना चाहिए। वकालत का पेशा एक नोबेल व्यवसाय है लेकिन ये एक सामान्य नौकरी के इंटरव्यू की तरह से हो गई है। प्रमोशन मांगा जा रहा है। यह प्रणाली उस गरिमायी विरासत को नजरअंदाज करती है जिसमें वरिष्ठता का रेशमी गाउन वकील को बार तथा प्रोफेशन के लिए असाधारण योगदान करने पर प्रदान किया जाता था।

वकीलों में पैदा होगा ईर्ष्या का भाव
सरकार ने वकीलों को वरिष्ठता देने के लिए लेखों के प्रकाशन तथा जज के सामने उनके इंटरव्यू को भी गलत बताया है। सरकार ने कहा कि इंदिरा जयसिंह फैसले में कहा गया है कि वकीलों को 40 फीसदी अंक प्रकाशन तथा इंटरव्यू में व्यक्तित्व और उपयोगिता के आधार पर तय होंगे। सरकार ने कहा कि यह बहुत ही व्यक्ति विशेष है तथा इसे उम्मीदवार की उपयोगिता का फैसला करने के लिए निर्णायक नहीं कहा जा सकता। इससे वकीलों में अनावश्यक रूप से ईर्ष्या का भाव पैदा होगा।

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इस पर भी जताई आपत्ति
वहीं, वरिष्ठता लेने के लिए अपना प्रचार (कमेटी के सदस्य जज में) करने पर भी केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई है और कहा है कि इसे गोपनीय मतदान और फुल कोर्ट वोट के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है। सरकार ने कहा कि मौजूदा प्रणाली अंकों को परफॉर्मेंस से ज्यादा महत्व दे रही है, यह भी बहुत अजीब है कि वकील अब गाउन के लिए आवेदन कर रहे हैं। जबकि सम्मान के लिए कभी आवेदन नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट 22 फरवरी को करेगा मामले पर विचार
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस मामले पर 22 फरवरी को विचार करेगी। केंद्र ने कहा है कि वह इस मामले में इसलिए हस्तक्षेप कर रही क्योंकि यह एडवोकेट ऐक्ट, 1961 से जुडा मामला है, जो केंद्रीय कानून है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बहस करेंगे।

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