फर्रुखाबाद
देश के प्रमुख विचारक और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचार्य ने कहा है कि भौतिकवाद और बाजारवाद के शोरगुल में हमारी नदियों की आवाज दफ़न हो गई है। उन्होंने कहा कि पिछले हजारों वर्षों में हिंदुत्व का जो जीवन दर्शन विकसित हुआ उसमें नदियों की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन आज हमारी नदियों का दम घुट रहा है।
केएन गोविंदाचार्य रविवार को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में अपनी गंगा संवाद यात्रा के दौरान लोगों से चर्चा कर रहे थे। इस दौरान गोविंदाचार्य ने वर्ष 2020 -21 मई में की गई अपनी गंगा यात्रा अध्ययन प्रवास के अनुभवों को भी लोगों से साझा किया और कहा कि पिछले हजारों वर्षों में हिंदुत्व का जो जीवन दर्शन विकसित हुआ उसमें नदियों की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने बताया कि आज के बदले समय में हिंदू जनमानस नदियों को कैसे देखता है? और वह उसे लेकर कितना सजग है? इसे देखने के लिए ही वर्ष 2020 -21में गंगा यात्रा अध्ययन प्रवास मां नर्मदा की परिक्रमा और यमुना मैया की दर्शन यात्रा संपन्न की। उन्होंने आगाह किया कि ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार जिस तेजी से बढ़ रही है, वह बहुत बड़ी चिंता का कारण है। लेकिन लगता है कि लोग नदियों के समक्ष संकट के प्रति निरपेक्ष से हो रहे हैं।
गोविंदाचार्य का कहना था कि अभी भी लोगों में नदियों के प्रति भावनात्मक लगाव है, लेकिन व्यवहारिक धरातल पर देखें तो चारों ओर भौतिकवाद बाजारवाद से उत्पन्न शोरगुल में नदियों की आवाज दफ़न होती जा रही है। बाजारवाद हर तरीके से हावी होने की कोशिश कर रहा है। इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि विकास के हमारे प्रचलित फार्मूले में गड़बड़ है जो कुछ चल रहा है। क्या चलाया जा रहा है, वह भारत की संस्कृति में बेमेल है।
गोविंदाचार्य ने कहा कि नदियों का हित साधना है तो समाज की सोच में परिवर्तन अवश्य होना चाहिए। इसके लिए समान रूप से काम करना पड़ेगा। यह कार्य शुरू है। किंतु असंभव नहीं। जब सरकार और समाज दोनों को ध्यान में रखकर देश के कोने – कोने में लोगों से संवाद होगा, तब हम समस्या का समाधान ढूंढ पाएंगे।
गोविन्दाचार्य ने कहा कि दुनिया के इस भूभाग ने सर्वाधिक समय तक समृद्धि और संस्कृति का अखंड प्रवाह देखा है। उसका नाम भारत है। भारत, हिंदुत्व का अर्थ गुणवाचक है। सभी उपासना पद्धतियों के प्रति आदर ने एक किया हुआ है। यह समाज भारतीय मानस में बहुत गहरे अंकित है। उन्होंने मनुष्य प्रकृति का विजेता नहीं बल्कि वह प्रकृति का हिस्सा है। इसलिए पर्यावरण से मेल नहीं खाता है। आर्थिक सामाजिक पदों की संयुक्त रचना ही समाज के संपूर्ण सृष्टि है। कुल मिलाकर एक सांगोपांग व्यवस्था है। इस का आदर करना भारत के स्वभाव में रचा बसा है।
गोविन्दाचार्य की फर्रुखाबाद में गंगा संवाद यात्रा का 20वां दिन था। आज इसने 200 किलोमीटर की यात्रा भी पूरी कर ली। आज गंगा संवाद यात्रा अमृतपुर से आगे बढ़ी। राजेपुर में सोनपाल सिंह सह मंत्री विश्व हिंदू परिषद, उदय प्रकाश पाल पूर्व प्रधान अवधेश दीक्षित, अरुण प्रताप सिंह, जितेंद्र प्रताप सिंह, सचिन अवस्थी, सुमित अवस्थी, निक्की अवस्थी, नकुल, आनंद कुमार, विजय अवस्थी, धर्मेंद्र आचार्य, रोहित तिवारी ने संवाद यात्रा का स्वागत किया और यात्रा में सम्लित हुए।
मीडिया प्रभारी मुरार कण्डारी के अनुसार गंगा संवाद यात्रा अमृतपुर, मोहदीनपुर, अलीगढ़ गांव, भुडिया भेड़ा, राजेपुर, महेशपुर गांव, वकसपुर गांव, डबरी गांव, जैनापुर गांव पहुंची। गंगा संवाद यात्रा के सह यात्री संगठन मंत्री गदाधर विद्रोही, बसवराज पाटिल कर्नाटका, साध्वी रेणुका जी गंगोत्री मठ, गणेश गौतम मथुरा, विवेक त्यागी बिजनौर, अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट सुबुही खान दिल्ली, निरंजना देवी गुजरात, ललिता देवी, विभा झा, निधि झा, संजय शर्मा, तरुण कुमार हरियाणा, सागर पाठक झांसी, समीर अंसारी, तारकेश्वर भारती, राज नारायण, ललित साहू, श्री राम लोधी टीकमगढ़, रिंकू नामदेव मध्य प्रदेश, शंभू कुमार, विमल कुमार, आचार्य पंडित जुगल किशोर, मंटू तिवारी, त्रिमूर्ति कुमार पटेल, कुमार संजय, देवता प्रसाद बिहार, ओम प्रकाश मिश्रा प्रयागराज, मोहन सिंह, उज्वल झा, भूपेंद्र तेवतिया, राजू झा, ललित झा आदि पद यात्रा कर रहे हैं।
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