जयपुर
राजस्थान हाईकोर्ट ने सार्वजनिक रोजगार के लिए महिला के अविवाहित होने की शर्त को असंवैधानिक घोषित कर दिया और साथ में सख्त टिप्पणी भी की है और कहा है कि राज्य सर्कार ने इस प्रकार की शर्त लगाकर महिलाओं में भी भेदभाव करने का एक नया मोर्चा खोल दिया है जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थी। जस्टिस दिनेश मेहता ने यह फैसला सुनाया राज्य सरकार द्वारा राखी गई इस शर्त को असंवैधानिक करार दे दिया। उन्होंने कहा कि अविवाहित होने के आधार पर सरकारी रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14/16 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और महिला की गरिमा का भी हनन है।
आपको बता दें कि महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत गाइडलाइन में ‘महिला का विवाहित होना आवश्यक’ की शर्त नंबर 2-A(ii) सम्मलित कर रखी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस शर्त को अतार्किक, भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का मौलिक उल्लंघन माना है। बालोतरा निवासी मधु चारण की ओर से रिट याचिका दायर कर इस नियम को चुनौती दी गई थी जिस पर हाईकोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया।
राजस्थान उच्च न्यायालय की एकलपीठ के जस्टिस दिनेश मेहता ने अपने निर्णय में व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि इस न्यायालय को यह गौर करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि भेदभाव करने का एक नया मोर्चा, जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थी; अब राज्य सरकार द्वारा अविवाहित होने की शर्त लगाकर खोल दिया है, जो अवैध है।
कोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए नियुक्ति नियमावली/परिपत्र की विवाहित होने की आवश्यक शर्त नंबर 2(A)(ii) एवं विज्ञप्ति की शर्त को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए कि राज्य सरकार चाहे, तो अविवाहित महिला से अंडरटेकिंग ले सकती है। इस संबंध में वर्तमान नियम/ परिपत्र को तदनुसार संशोधित कर सकती है। साथ ही याची को मैरिट अनुसार चार सप्ताह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति देने के आदेश दिए।
यह है पूरा मामला
बालोतरा निवासी मधु चारण की ओर से अधिवक्ता ने रिट याचिका दायर कर बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत गाइडलाइन में ‘महिला का विवाहित होना आवश्यक’ की शर्त नंबर 2-A(ii) सम्मलित कर रखी थी जिस कारण सम्पूर्ण राजस्थान के सभी संबंधित राजस्व ग्राम में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों पर अविवाहित लड़की/महिला आवेदन ही नहीं कर सकती है। याची की ओर से बताया गया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी बालोतरा की ओर से 28 जून, 2019 को विज्ञप्ति जारी की गई। इसमें तहसील के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों पर रिक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के पदों के लिए आवेदन पत्र मांगे गए।
याची के राजस्व गांव गुगड़ी में पहले आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पद पर याची की माता नियुक्त थी, लेकिन उनके असामयिक निधन के चलते पद रिक्त हो गया। याची के पिता के दो पुत्रियां हैं। इस कारण माता के देहांत पश्चात दोनों पिता के पास ही रह रही हैं। याची की ओर से ये भी बताया गया कि किसी भी नागरिक को उसकी वैवाहिक स्थिति को आधार मानकर उसे सार्वजनिक रोजगार देने से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर ऐसी शर्त अधिरोपित की जाती है, तो वह प्रथम दृष्टया अवैध, मनमानी और असंवैधानिक है। याची के अधिवक्ता ने न्यायालय का ध्यान सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक निर्णय मधु किशकर बनाम बिहार राज्य की ओर भी दिलाया और बताया कि पूर्व में महिला बनाम पुरूष के मध्य भेदभाव होने को चुनोती दी जाती रही है। लेकिन अब तो राजस्थान सरकार के कृत्य से अविवाहित महिला बनाम विवाहित महिला के मध्य भेदभाव करने का नया अध्याय शुरू किया गया है, जो मनमाना, अवैध और गैरवाजिब है।
सरकार ने दिया यह तर्क
मामले में राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि याची द्वारा आवेदन पत्र अंतिम तिथि के पश्चात पेश किया है। इसलिए नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। साथ ही बताया कि ‘महिला के विवाहित होना जरूरी’ के नियम बाबत राज्य सरकार की मंशा यह है कि अविवाहित लड़की के नियुक्त कर देने के बाद उसकी शादी हो जाने पर वह अन्यत्र चली जाने से आंगनबाड़ी केंद्र का काम बाधित हो जाएगा।
कोर्ट ने राज्य सरकार के इन तर्कों से असहमत होते हुए महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि सार्वजनिक रोजगार के लिए अविवाहित उम्मीदवार होने मात्र से उसे अपात्र मानना अतार्किक, भेदभावपूर्ण और संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। लिहाजा यह शर्त असंवैधानिक है।
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