राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने तय किया दस साल का मिशन, व्यवस्था में बदलाव का लिया संकल्प, उठाए ये अहम मुद्दे

 बेंगलुरु

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की बेंगलुरु में हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में संगठन का दस साल का मिशन तय करते हुए व्यवस्था में बदलाव का संकल्प लिया गया। व्यवस्था परिवर्तन के लिए बौद्धिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक गतिविधियों को संचालित करने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की। बैठक में देश के कई अहम मुद्दे उठाते हुए सरकार का उस ओर ध्यान आकृष्ट किया गया।

संगठन के संस्थापक गोविंदाचार्य, राष्ट्रीय संयोजक बसवराज पाटिल, कार्यकारी संयोजक, सुरेंद्र सिंह बिष्ट के नेतृत्व में हुई इस बैठक में संगठन के दस साल के लक्ष्य पर चर्चा हुई। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सह- संगठन मंत्री गिरिराज गुप्ता, एडवोकेट ने बताया कि बैठक में जलवायु परिवर्तन, जल संचय, गोपालन, एमएमपी कानून, न्याय व्यवस्था, NRC, चिकित्सा व्यवस्था सहित अंतरराष्ट्रीय विषयों पर मंथन किया गया।

बैठक के प्रारम्भ में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचार्य का स्वागत करते हुए संगठन के पदाधिकारी

33% भूभाग पर वनों की आवश्यकता
बैठक में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे नियंत्रित करने के लिए शीघ्र ही 33% भूभाग पर वनों की आवश्यकता बताते हुए आह्वान किया गया कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खेतों में अधिकाधिक फलदार पेड़ लगाए जाएं। इससे जलवायु परिवर्तन के संकट से उत्पन्न स्थितियों पर जहां नियंत्रण हो सकेगा; वहीं देश में विशाल संख्या में लाभदायी रोजगार निर्माण भी होंगे।

जल संचय के लिए हर ग्राम पंचायत में बनें पांच जलाशय
बैठक में कहा गया कि  जलवायु परिवर्तन से मौसम के बिगड़ते मिजाज को देखते हुए हमें फिर से पूर्वजों की वर्षा जल के संचय की विधि को स्वीकारना होगा। इसके लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत में जलाशयों का निर्माण की आवश्यकता बताई गई। बैठक में कहा गया कि कभी अति तेज वर्षा और कभी बहुत दिनों तक वर्षा का न होना, अब सामान्य बात होने लगी है। इसलिए बाढ़ और सूखा दोनों से बचने के लिए तीन महीने होने वाली वर्षा से प्राप्त जल को जलाशयों में संचय करने की जरूरत है। और यह लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हर ग्राम पंचायत में औसत 5 जलाशयों का शीघ्र निर्माण हो।

गोपालन को व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए योजनाएं  बनाई जाएं
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का मानना है कि भारत में गाय संस्कृति और समृद्धि दोनों की प्रतीक है। गाय का दूध मनुष्य के लिए अमृत है और गाय का गोबर-गोमूत्र खेतों के लिए अमृत है, विशेष खुराक है। हमारी परंपरा में गोपालन स्वतंत्र व्यवसाय था और कृषि स्वतंत्र व्यवसाय। पर पतनकाल में दोनों का मिश्रण हो गया। हम गोपालन की बिधि लगभग भूल गए। 5 अलग अलग स्थानों में हुए सफल प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि नस्ल सुधार और पशु खाद्य पर ध्यान देकर देशी गायों को फिर से दुधारू बनाया जा सकता है। उन सफल प्रयोगों के अनुभवों के आधार पर हम मांग करते हैं कि गोपालन को स्वतंत्र व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए योजनाएं बनें।

एमएसपी गारण्टी कानून बने
बैठक में एमएसपी गारण्टी कानून की मांग करते हुए कहा गया कि सरकार 23 कृषि जिन्सों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, पर सरकारी खरीद की व्यवस्था केवल 5 वस्तुओं की है। उसमें भी धान और गेंहू की खरीदी की व्यवस्था पंजाब, हरयाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश आदि कुछ प्रदेशों में ही है। कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसानों से सभी वस्तुओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर न खरीदे जाने के कारण 2000 से 2016 के बीच किसानों को 40 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ। अर्थात अगर जिन जिन्सों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार घोषित करती है, उस सभी के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता तो 15 वर्षों में 40 लाख करोड़ रुपए किसानों को अतिरिक्त मिले होते। किसानों के इस शोषण को दूर करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी कानून बनाना ही समाधान है।

10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का बने कानून
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर भी गहरी चिंता जताई है। बैठक में मांग की गई कि प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून शीघ्र बनाया जाए। ताकि लोगों को सस्ता, सुलभ और शीघ्र न्याय मिल सके। बैठक में कहा गया कि भारत में मुकदमों के निर्णय 10 से 20 वर्ष लग रहे हैं। इसका प्रमुख कारण न्यायाधीशों की कमी है। जबकि विश्व के अनेक देशों में न्यायालयों में मुकदमों का निर्णय एक वर्ष के अंदर होता है।

भारत में दस लाख की आबादी पर सिर्फ 15 न्यायाधीश
बैठक में बताया गया कि अमेरिका में 10 लाख की आबादी पर 110 , इंग्लैंड में 60 न्यायाधीश हैं, पर भारत में  केवल 15 न्यायाधीश हैं। बैठक में बताया गया कि 1987 में न्यायिक आयोग ने केंद्र सरकार को  सुझाव दिया था कि प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का नियम बने। पर सरकार ने आज तक उस सुझाव को लागू नहीं किया है। लोकतंत्र और सुशासन की सफलता के लिए शीघ और सुलभ न्याय अति आवश्यक है। इसलिए केंद्र सरकार की अहम कदम उठाते हुए  मांग 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाना चाहिए।

 कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से कराया जाए मुक्त
बैठक में कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से मुक्त करने की मांग करते हुए कहा गया कि स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार की गलतियों के कारण न केवल तिब्बत चीन के कब्जे में चला गया, बल्कि भारतीय संस्कृति का उद्गम स्थल कैलाश मानसरोवर भी चीन के कब्जे में चला गया। स्वतंत्रता को 75 वर्ष होने वाले हैं, अतः हमारी गलतियों को सुधारने का भी उचित समय आ रहा है। हमारे तीर्थक्षेत्र कैलाश मानसरोवर जाने के लिए हमें चीन का वीसा (अनुज्ञप्ति) लेनी पड़ती है, जो हमारे लिए राष्ट्रीय पीड़ा है। इसलिए केंद्र सरकार से मांग है कि कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से शीघ्र मुक्त करने के लिए कूटनीतिक और सामरिक अभियान चलाया जाए। इस मांग के समर्थन में देशव्यापी अभियान चलाने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) बनाने की मांग
केंद्र में वर्तमान सत्ताधारी दल अनेक दशकों से भारत मे घुसे अवैध घुसपैठियों को भगाने के लिए आंदोलन चलाता था। उसमें बांगलादेश से घुसे लाखों – करोड़ों अवैध घुसपैठियों की समस्या प्रमुख है। केंद्र में सरकार बने 8 वर्ष से अधिक हो गए पर अभी तक अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कोई कार्यवाही सरकार नहीं कर पाई है। भविष्य में और अवैध घुसपैठिये न घुस पाएं, इसके लिए वर्षों से राष्ट्रीय नागरिकता पंजी बनाने की मांग भी वर्तमान सत्ताधारी करते थे। एक बार वर्तमान गृहमंत्री ने संसद में भी राष्ट्रीय नागरिकता पंजी बनाने का आश्वासन दिया है। पर अभी तक उस दिशा में कोई पहल दिखाई नहीं दे रही है। देश के नागरिकों के रोजगार बचाने और देश की सुरक्षा को संभावित खतरे से बचाने के लिए केंद्र सरकार को शीघ्र राष्ट्रीय नागरिकता पंजी बनानी चाहिए।

आयुर्वेद को समान स्थान देने की मांग
बैठक में कहा गया कि जब हम परतंत्र थे, तब अंग्रेजों ने हमारी पारम्परिक शिक्षा और चिकित्सा पद्धति को समाप्त करने की चालें चली और अपनी व्यवस्थाओं को हम पर थोपा। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रश्चात हमारी पारम्परिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को जो संरक्षण केंद्र सरकार से प्राप्त होना चाहिए था, वह अभी तक नहीं मिला है। अभी भी आयुर्वेद को केंद्र सरकार दोयम  दर्जा देती है। बैठक में केंद्र से  स्वतंत्र आयुर्वेद मंत्रालय गठित करने की मांग की गई और कहा गया कि एलोपेथी को जितने संशाधन बजट में आबंटित होते हैं, उतने ही संशाधन आयुर्वेद को बजट में आबंटित किया जाए।

ग्राम पंचायतों को हर साल मिले  केंद्रीय बजट की 7% राशि
विकेन्द्रित और संतुलित विकास के लिए ग्राम पंचायतों को आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराने की मांग करते हुए राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने कहा कि इसके लिए  केंद्रीय बजट की 7% राशि सीधे ग्राम पंचायतों को आबंटित की जाए। संगठन ने कहा कि उनकी इसकी मांग पर केंद्र सरकार ने मांग को वित्त आयोग को सौंप दिया था। उसके आधार पर वित्त आयोग ने 2014 में ग्राम पंचायतों को संशाधन उपलब्ध कराने की अनुशंसा की थी। उसके आधार पर कुछ संशाधन ग्राम पंचायतों को सीधे मिल रहे हैं। 2019 के बाद की पंचवर्षीय योजना में 5 वर्षों में औसत 80 लाख रुपए ग्राम पंचायतों को पहुंच रहे हैं। केंद्रीय बजट की 7% राशि के हिसाब से तो हर वर्ष औसत 80 लाख रुपए  प्रत्येक ग्राम पंचायत को मिलने चाहिए थे

गरीबी रेखा के समान अमीरी रेखा भी निर्धारित हो
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने मांग की कि गरीबी रेखा के समान अमीरी रेखा भी निर्धारित होनी चाहिए। बैठक में कहा गया कि विश्व में पूंजीवादी देशों द्वारा फैलाए  आर्थिक सुधारों के बाद  सभी देशों में आर्थिक विषमता बढ़ती गई  है और अब विश्व के अर्थशास्त्रियों के सम्मुख वह प्रमुख समस्या बन गई  है। भारत में  भी आर्थिक विषमता विकराल रूप ले रही है। आर्थिक उदारीकरण के बाद आई सभी सरकारों ने  विकास को ही मुख्य मुद्दा बनाया है और संपत्ति का न्याय वितरण को उन्होंने अपने एजेंडे से बाहर कर दिया है।

नतीजतन आर्थिक विषमता विस्फोटक रूप ले रही है। एक तरफ अरबपति अब खरबपति बन रहे हैं और दूसरी तरफ समाज की आधी आबादी गरीबी में जीवन गुजारने के लिए मजबूर है। आर्थिक विषमता पर अंकुश लगाकर देश में आर्थिक न्याय स्थापित करने के लिए कदम उठाना अब आवश्यक हो गया है। इस दृष्टि से हम सरकार से मांग करते हैं कि वह एक आयोग गठित करके अमीरी रेखा का निर्धारण करे और उस रेखा से ऊपर रहने वाले लोगों की सम्पूर्ण संपत्ति (उत्पादक, अनुत्पादक जैसे भेद न करते हुए) पर संपत्ति कर लगाने का कानून बनाए।

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