अहसास
रचना शर्मा, एडवोकेट और एक्सपर्ट, महिला उत्पीड़न मामले
धूप का इक नन्हा कतरा
रोज सुबह
मेरे घर के अहाते में
चुपके से उतर आता है
बिना किसी आहट के
बस कुछ ही पल में
दे जाता है
अहसास अपने होने का
मगर मेरा गाँव
अब शहर होने जा रहा है
सांप की तरह फन उठाये
कोई इमारत
निगल जाएगी
धूप के इस कतरे को
इसीलिए संजो रही हूँ इसे
अपनी डायरी के पन्नों में
ताकि आने वाली पीढ़ी को
बता सकूं
कभी इस घर में भी
हुआ करती थी
उजालों भरी सुबह
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