सोशल मीडिया पर बड़ा कैम्पेन: ‘10 लाख की आबादी पर 100 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाया जाए’

नई दिल्ली 

न्यायाधीशों की कमी से देश में करोड़ों मुकदमे लंबित पड़े हुए हैं। इसके समाधान के लिए केंद्र सरकार से मांग की गई है कि 10 लाख की आबादी पर 100 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाया जाए। ताकि लोगों को शीघ्र और सुलभ न्याय मिल सके।

यह मांग देश के विख्यात विचारक और चिंतक गोविंदाचार्य के निर्देशन में बने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने की है। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने इसे लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक सोशल मीडिया कैम्पेन भी शुरू किया है जिसे व्यापक समर्थन मिल रहा है।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा  30 जुलाई 2022 को कही गई अहम बात का भी जिक्र करते हुए उसका स्वागत किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि जीवन को सुलभता और व्यापार की सुलभता के समान ही न्याय की सुलभता भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। लोगों को शीघ्र न्याय मिलना, यह उत्तम सुशासन और मजबूत लोकतंत्र का भी लक्षण है।

तीन दशक बाद भी न्यायिक आयोग  की सिफारिश नहीं मानी 
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बसवराज पाटिल बीरापुर और राष्ट्रीय कार्यकारी संयोजक सुरेन्द्र सिंह विष्ट ने एक संयुक्त बयान में न्यायालयों में करोड़ों मुकदमे लंबित पड़े रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान गति से अगर मुकदमों का निर्णय होता रहा तो पुराने मुकदमों के निर्णय में ही दशकों लग जाएंगे, फिर हर दिन नए मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, उनके निर्णय का समय कब आएगा, कहना कठिन है। उन्होंने कहा कि मुकदमों के निर्णयों में हो रही देरी को ध्यान में रखते हुए 1987 में न्यायिक आयोग (Law Commission) ने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाए। पर तीन दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद केंद्र सरकार ने वैसा कानून नहीं बनाया है।

भारत में 10 लाख की आबादी पर केवल 15 न्यायाधीश
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के नेताओं ने कहा कि 1987 में अमेरिका में प्रति 10 लाख की आबादी पर 110 न्यायाधीश थे। अब अमेरिका में प्रति 10 लाख की आबादी पर 150 न्यायाधीश हो गए हैं और यूरोप में अनेक देशों में प्रति 10 लाख की आबादी पर 200 न्यायाधीश तक है। अतः उन देशों में मुकदमों का निर्णय एक या दो वर्ष में हो जाता है। हमारे यहां 2022 में प्रति 10 लाख की आबादी पर केवल 15 न्यायाधीश है। इसलिए हमारे यहां मुकदमों का निर्णय होने में 10 से 20 वर्ष लग रहे हैं।  उन्होंने कहा कि यह स्थिति  न्याय में देरी न्याय को नकारने के समान है।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के नेताओं ने कहा कि अब 2022 आते- आते जनसंख्या भी दुगुनी हो गयी है और न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या भी अनेक गुना बढ़ गई है। लिहाजा अब शीघ्र और सुलभ न्याय के लिए प्रति 10 लाख की आबादी पर 100 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाया जाना चाहिए। ऐसा कानून मुकदमों के शीघ्र निर्णय के लिए आवश्यक है, साथ ही देशा में सुशासन सुदृढ़ करने और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए भी आवश्यक है।

IT रेड में उजागर हुई 150 करोड़ की ब्लैक मनी, 4 करोड़ कैश और 7 करोड़ के गहने भी जब्त

SC ने दिए पुलिस कमिश्नर को निर्देश, ऐसी याचिका लगाने वाले से वसूलकर लाओ 10 लाख, जानें पूरा मामला

खाटूश्यामजी में भगदड़: महिलाएं और बच्चे पैरों तले रौंदे जाते रहे, तीन महिला श्रद्धालुओं की मौत

राजस्थान: 110 CBEO, DEO, 1600 प्रिन्सिपल के तबादले, शिक्षा विभाग ने जारी की दो लिस्ट

जज से माफी मांगिए तो बैंक की डिप्टी मैनेजर बोली ‘सॉरी माई फुट’, इसके बाद फिर हुआ ये

साहब छुट्टी दे दीजिए, पत्नी रूठकर मायके चली गई है; उसे मनाने जाना है

7th pay Commission: आठवां वेतन आयोग को लेकर आया अपडेट, केंद्र सरकार ने कही ये बड़ी बात | DA /DR को लेकर रखा ये फैक्ट

11 करोड़ का मिड डे मील डकार गया प्राइमरी टीचर, आधा दर्जन बैंक और सात विभाग घोटाले में शामिल

सऊदी अरब में मिला प्राचीन मंदिर, 8000 साल पुरानी सभ्यता की हुई खोज