RVRES
डॉ. केबी शर्मा, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफ़ेसर
मुख्य मंत्री की बजट घोंषणा 2010 ‘राज्य की अनुदानित संस्थाओं में कार्यरत कार्मिकों को समय पर वेतन चुकारा न होने की शिकायतों’ के अनुरूप वर्ष 2011 में राजस्थान स्वेच्छया ग्रामीण शिक्षा सेवा 2010 के अंतर्गत राज्य सरकार की सेवा में समायोजन किया गया। साथ ही राजस्थान सरकार के कार्मिकों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करने के ऐतिहासिक घोषणा की गई। लेकिन आज ये कार्मिक (RVRES) वास्तव में समायोजन के दंश को सहन करने के लिए मजबूर हैं। नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों के विपरीत नीतिकारों ने अजीबोगरीब नियमों में बाँध कर जुलाई-11 में इन्हें समायोजित कर इन कार्मिकों को वेतन के अलावा लगभग हर उस सेवा परिलाभ से वंचित कर दिया जिसके ये वास्तव में हकदार हैं।
अब ये समायोजित शिक्षाकर्मी अधिवार्षिकी की उम्र में जीवन के अन्तिम पायदान पर राजकीय पद से सुशोभित होने के बावजूद 12 वर्ष बाद भी वित्तीय असुरक्षा के भाव से घिरे हैं। कई समायोजित शिक्षाकर्मी तो बारह वर्ष में न्याय का इन्तजार करते-करते बिना वेतन बकाया पाये समायोजन के इस दंश के साथ अन्तिम सांस ले चुके हैं।
समय पर वेतन चुकारा न होने की मूल समस्या को हल करने की द्रष्टि से अपनाई गई समायोजन की इस प्रक्रिया के बारह वर्ष बीत जाने के बाद लेख लिखे जाने तक अनेक कर्मियों को पिछले बकाया जैसे छठे वेतनमान के ऐरीअर के अतिरिक्त ग्रेच्युटी, उपार्जित अवकाश नगदीकरण राशि का भुगतान उच्च न्यायालय खंड पीठ, जयपुर एवं उच्चतम न्यायालय के सात वर्ष पूर्व् पारित आदेशों की अनुपालना में राज्य और अनेक अनुदानित संस्थानों दोनों ने ही ने नहीं किया।
इन कर्मियों को पुराने वेतनमान पर नई नियुक्ति मानते हुए इन पर नई पेंशन स्कीम लागू की गयी। जिसे उच्च न्यायालय जोधपुर की खंडपीठ ने असंवैधानिक करार देते हुए इन कर्मियों को राजस्थान सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स,1996 के तहत पेन्शन प्राप्त करने के लिए, पूर्व अनुदानित संस्था से प्राप्त पीएफ़ की राशि मय 6% ब्याज अपने नियोक्ता अधिकारी को जमा कराने का आदेश प्रदान किया है। उक्त आदेशों में राज्य को किसी भी तरह का कोई निर्देश नहीं दिया गया है।
उक्त आदेश की अनुपालना में वर्तमान में सेवारत तथा लगभग 3500 समायोजित सेवानिवृत कर्मी अपनी पीएफ की राशि मय 6% ब्याज राजकोष में जमा करेंगे तथा इनका 12 वर्ष का एनपीएस का फण्ड (राज्यांश) भी राज्य सरकार को मिलेगा। इस कारण इन कार्मिकों को पेन्शन देने पर राज्य पर एक से दो वर्ष तक कोई विशेष वित्तीय भार तुरंत प्रभाव से नहीं पड़ेगा I उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों न्यायालय को इन कर्मियों को पुरानी पेन्शन लागू करने के सन्दर्भ में राज्य पर पड़ने वाले वित्तीय भार की सूचना में ये तथ्य नहीं बताया गया है।
फिर भी उच्चतम न्यायालय में इन्हें पुरानी पेंशन देने के निर्णय को चुनौती देने के लिए विशेष याचिका दायर करने का रास्ता चुना गया। उच्चतम न्यायालय द्वारा इन कर्मियों के पक्ष में फैसला देने के बाद इन्हें राहत देने के स्थान पर एक बार फिर उच्च न्यायालय में रिव्यू पिटीशन का रास्ता चुना गया।
रिव्यु आदेश पर उच्चतम न्यायालय के स्थगन आदेश के बाद ये वाद उच्चतम न्यायालय में RVRES नियम 2010 के उस संशोधित नियम 5 (IX) पर केन्द्रित है जो अस्तित्व में ही नहीं है। संशोधित नियम 5 (IX) के अनुसार इन कार्मिकों को नई पेन्शन योजना के लिए पात्र माना गया है जबकि वर्तमान में समायोजन की तिथि से नियुक्ति मानते हुए 10 वर्ष से अधिक सेवा अवधि वाले समायोजित सेवानिवृत कार्मिक राजस्थान सिविल सेवा (पेन्शन) नियम 1996 के प्रावधानों के अनुरूप आंशिक/ अनुपातिक पेन्शन प्राप्त कर रहे हैं।
अपने हक़ और इन्साफ के लिए इनका न्यायालय में जाना भी अनेक लोगों को रास नहीं आता। ये तो स्वाभाविक ही है। घर में जब कोई बड़ा छोटे से कुछ छीनता है तो वो पीड़ित भी माई और बाप से ही शिकायत करता है न।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिन मुख्यमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए अनुदानित कर्मियों को सुरक्षा कवच प्रदान करने हेतु समायोजन की प्रक्रिया शुरू की गई अब उन्हीं RVRES कर्मियों के साथ लगातार बारह वर्षों से विभिन्न आयामों पर दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया जा रहा है? क्या अपने को संवेदनशील कहने वाली वर्तमान सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले सेवानिवृत कार्मिकों को अनुदानित संस्था की प्रथम नियुक्ति से पुरानी पेन्शन का वाजिब हक प्रदान करेगी?
हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार रिटायर होने पर राज्य कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा की पूर्ण गारन्टी की बात कई बार कह चुके हैं तो अब RVRES कार्मिकों को फिर उम्मीद है कि वे उनके संकट मोचक बन कर दिंवगत कार्मिकों के आश्रित परिवार और सेवानिवृत कार्मिकों को पूर्व सेवा लाभ के साथ पेंशन परिलाभ प्रदान कर सामाजिक सुरक्षा एवम संरक्षण प्रदान करेंगे।
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