NIRF रैंकिंग: रसातल में जाती राजस्थान की उच्च शिक्षा | जानिए दुर्दशा की वजह

Higher Education in Rajasthan

डॉ. नारायण लाल गुप्ता


कल भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की वर्ष 2023 के लिए रैंकिंग जारी की गई। यह राजस्थान की उच्च शिक्षा के लिए कर एक और शर्मनाक और निराशजनक दिन था। एनआईआरएफ रैंकिंग में देशभर के उच्च शिक्षा संस्थानों के समक्ष हमारे संस्थानों का स्थान कहीं दिखाई नहीं दे रहा है! स्थिति में सुधार की बात बहुत दूर है; प्रदर्शन में निरंतर गिरावट  जारी है।

भारत में राजस्थान के उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रदर्शन ने फिर एक बार राज्य की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए हैं। अव्वल तो राजस्थान के अधिकांश राजकीय उच्च शिक्षा संस्थानों ने इस रैंकिंग के लिए आवेदन करने हेतु स्वयं को योग्य ही नहीं समझा किंतु जिन गिने-चुने संस्थानों ने आवेदन किया, उनके परिणाम भी बहुत निराशाजनक ही रहे हैं।

आवेदन करने वाले विश्वविद्यालयों की बात करें तो राज्य पोषित विश्वविद्यालयों में से कुल 12 विश्वविद्यालयों ने ( सामान्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, कृषि शिक्षा, संस्कृत शिक्षा तथा चिकित्सा शिक्षा सहित) रैंकिंग प्रक्रिया में भाग लिया। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर सहित मत्स्य विश्वविद्यालय अलवर, शेखावाटी विश्वविद्यालय सीकर, जनजाति विश्वविद्यालय बांसवाड़ा, बृज विश्वविद्यालय भरतपुर, पत्रकारिता विश्वविद्यालय जयपुर, विधि विश्वविद्यालय जयपुर, बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय स्किल विश्वविद्यालय जयपुर आदि के नाम इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले विश्वविद्यालयों में से नदारद हैं।

राज्य वित्त पोषित सामान्य शिक्षा के लगभग 34 महाविद्यालयों ने रैंकिंग हेतु आवेदन किया; पर उच्च शिक्षा में काम करने वाले या उससे वास्ता रखने वालों को उनकी दयनीय स्थिति देखते हुए उनका हश्र पता था, उनकी मजबूरी केवल राज्य के आदेश की पालना करनी थी।

2023 की रैंकिंग की बात करें तो शिक्षा संस्थानों की ओवरऑल रैंकिंग में राज्य वित्त पोषित कोई भी संस्थान प्रथम 100 में जगह नहीं बना सका है। निजी संस्थानों में बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी ने 25 वां और वनस्थली विद्यापीठ में 97 वां स्थान प्राप्त किया है। जबकि केंद्र वित्त पोषित मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर ने 62वाँ तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जोधपुर ने 66 वाॅं  स्थान प्राप्त किया है।

ओवर ऑल रैंकिंग में 101-150 के रैंक बैंड में राज्य का कोई उच्च शिक्षा संस्थान नहीं है। सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज जयपुर पिछली बार रैंक बैंड 101-150 में था, इस बार उसकी रैंक गिरकर रैंक बैंड 151-200 में आई है। देश के प्रथम 200 में स्थान पाने वाला राजस्थान का राज्य वित्त पोषित यह एकमात्र उच्च शिक्षा संस्थान है।  151-200 के रैंक बैंड में राजस्थान से निजी उच्च शिक्षा संस्थान मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर ने स्थान प्राप्त किया है।

यदि ओवरऑल रैंकिंग के अलावा केवल विश्वविद्यालयों की रैंकिंग देखी जाए तो केंद्र वित्त-पोषित सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, बांदरसिंदरी, राज्य वित्त-पोषित श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर और राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस जयपुर ने 151- 200 रैंक बैंड में जगह बनाई है। पिछली बार 151-200 के रैंक बैंड में जगह पाने वाला मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय प्रथम 200 की रैंकिंग से बाहर हो गया है। प्रथम 200 विश्वविद्यालयों में राजस्थान से आने वाले नामों में शेष विश्वविद्यालय – बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस(20), बनस्थली विद्यापीठ (58), मणिपाल विश्वविद्यालय, (101-150), एमिटी विश्वविद्यालय (151-200), सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय (151-200) -निजी हैं।

उच्च शिक्षा की निरंतर होती दयनीय स्थिति को देखा जाए तो 2016 में प्रारंभ हुई नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रैंकिंग फ्रेमवर्क में विश्वविद्यालय रैंकिंग में राजस्थान से कोटा विश्वविद्यालय 78वें पायदान पर और राजस्थान पशु-चिकित्सा और पशु-विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर 95 वें स्थान पर था। 2017 में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर को 79 वां तथा राजस्थान पशु-चिकित्सा एवं पशु-विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर को 68 वां स्थान मिला था।  2018 में राजस्थान विश्वविद्यालय और राजस्थान पशु-चिकित्सा एवं पशु-विज्ञान विश्वविद्यालय की रैंकिंग गिरकर 101-150 के रैंक बैंड में आ गई।  2019 में राजस्थान विश्वविद्यालय प्रथम 200 से भी बाहर हो गया। 2020,2021 व 2022 की विश्वविद्यालय रैंकिंग में राजस्थान से केवल मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर 151-200 के रैंक बैंड में आ सका, इस बार यह इस रैंक बैंड से भी बाहर है।

राजस्थान के राजकीय महाविद्यालयों की पिछले वर्षों में हुई वृद्धि के चमकते आंकड़े हमको दिखाई देते हैं लेकिन इनकी निरंतर होती दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। वास्तव में जिन पैरामीटर पर रैंकिंग की जाती है उसको देखते हुए राजकीय महाविद्यालयों को कभी आवेदन के लायक ही नहीं समझा गया‌। पर इस बार बिना जमीनी परिस्थितियों को ठीक किए हुए आवेदन हेतु राजकीय आदेश जारी किए गए। परिणामस्वरूप आदेशों की पालना में लगभग 34 महाविद्यालयों ने आवेदन किए, नतीजा वही हुआ जिसकी आशंका थी। एक भी राजकीय महाविद्यालय देश के प्रथम 200 में स्थान प्राप्त नहीं कर सका।

अभियांत्रिकी महाविद्यालयों की बात करें तो प्रथम 200 में केंद्र वित्त पोषित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी जोधपुर (30) तथा मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी जयपुर (37) के अलावा निजी संस्थान बिट्स पिलानी (25), बनस्थली विद्यापीठ(68), मणिपाल (76) और एमिटी (101-150) ने स्थान पाया है। राज्य पोषित कोई भी अभियांत्रिकी महाविद्यालय प्रथम 200 में कहीं दिखाई नहीं देता।

जिन पैरामीटर के आधार पर यह रैंकिंग तय होती है उनमें शिक्षक- विद्यार्थी अनुपात, वित्तीय संसाधन एवं तकनीक का प्रयोग, फैकेल्टी की शोध उपलब्धियां, विद्यार्थियों का प्लेसमेंट, शिक्षण एवं अधिगम के परिणाम, भौतिक संसाधन, संस्थान के बारे में सामान्य धारणा और समावेशी वातावरण आदि पैरामीटर प्रमुख होते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2021 कहती है कि देश के भविष्य का चित्र युवा शक्ति को गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा के अवसरों के आधार पर तय होगा। पर राजस्थान में तो वर्तमान स्थिति को देखते हुए राज्य की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा है।

विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में हजारों पद खाली पड़े हैं, उन्हें भरने के स्थान पर गेस्ट फैकेल्टी की अस्थाई व्यवस्था उच्च शिक्षा विभाग की उपलब्धियों के रूप में प्रचारित की जा रही है;  प्रयोगशालाएं, खेल मैदान और पुस्तकालय प्रशिक्षित स्टाफ की बाट जोह रहे हैं; शिक्षकों की दक्षता की परिभाषा – शिक्षण और शोध के स्थान पर सूचना संग्रहण और प्रेषण आदि जैसे लिपिकीय कार्यों को निर्देशानुसार शीघ्रता से पूरा करना – हो गई है।

बिना योजना, बिना भौतिक और मानवीय संसाधनों के और बिना स्पष्ट दूरगामी लक्ष्य के जिस तरह 2-4 कमरों में थोक के भाव में सोसाइटी मोड पर उच्च शिक्षा संस्थान खोले जा रहे हैं…, शैक्षिक और शोध की गुणवत्ता के स्थान पर जिस तरह कागजी आंकड़ों का उत्पादन हो रहा है…, उससे ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो और डिग्री प्राप्त करने वालों की संख्या तो निश्चित बढ़ेगी; पर हमारे ऐसे उच्च शिक्षा संस्थानों से निकली राजस्थान की युवा पीढ़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाने में सक्षम  हो सकेगी, इसमें तो घनघोर संदेह है।

एनआईआरएफ के इस तरह के परिणाम शासन और उच्च शिक्षा के हितधारकों के लिए एक चेतावनी है कि स्वाभिमानी, सुशिक्षित, कौशल युक्त विकसित राजस्थान का सपना, बिना उच्च शिक्षा की मूलभूत समस्याओं – स्वायत्तता, ज्ञान सृजन हेतु समुचित वातावरण और संसाधनों आदि को हल किए, पूरा होना संभव नहीं है।

(लेखक अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अतिरिक्त महामंत्री हैं)

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