Good News: चांद के ऑर्बिट में आया चंद्रयान-3… अब इस डेट को होगी लैंडिंग | ISRO की बड़ी कामयाबी

बेंगलुरु

इस समय देश के लिए गौरव करने वाली खबर आ रही है ISRO ने जो चंद्रयान-3 भेजा था उस अभियान में हमारी इस अंतरिक्ष एजेंसी को बड़ी सफलता मिली है। दरअसल इस Chandrayaan-3 ने अपने प्रक्षेपण के 22 दिन बाद चांद का ऑर्बिट पकड़ लिया है अब चंद्रयान करीब 166 km x 18 हजार km की ऑर्बिट में यात्रा कर रहा है ये चंद्रमा का ऑर्बिट है इसके बाद अगला बड़ा दिन 17 अगस्त होगा; जब चंद्रयान-3 प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल अलग होगा इसके बाद सिर्फ लैंडिंग बाकी रहेगी

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इस कामयाबी के बाद अब चंद्रयान-3 चंद्रमा के चारों तरफ 166 km x 18054 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाएगा इसरो ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए करीब 20 से 25 मिनट तक थ्रस्टर्स ऑन रखा इसी के साथ चंद्रयान चंद्रमा की ग्रैविटी में फंस गया अब वह उसके चारों तरफ चक्कर लगाता रहेगा

अब ये होगा
इसे लूनर ऑर्बिट इंजेक्शन या इंसर्शन (Lunar Orbit Injection or Insertion – LOI) भी कहते हैं चंद्रमा के चारों तरफ पांच ऑर्बिट बदले जाएंगे आज के बाद 6 अगस्त की रात 11 बजे के आसपास चंद्रयान की ऑर्बिट को 10 से 12 हजार किलोमीटर वाली ऑर्बिट में डाला जाएगा 9 अगस्त की दोपहर पौने दो बजे करीब इसके ऑर्बिट को बदलकर 4 से 5 हजार किलोमीटर की ऑर्बिट में डाला जाएगा 14 अगस्त की दोपहर इसे घटाकर 1000 किलोमीटर किया जाएगा पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 KM के ऑर्बिट में जाएगाइसके बाद 23 की शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी लेकिन अभी 18 दिन की यात्रा बची है

अब कम की जाएगी स्पीड
चांद के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए चंद्रयान-3 की गति को करीब 3600 किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास किया गया क्योंकि चंद्रमा की ग्रैविटी धरती की तुलना में छह गुना कम है अगर ज्यादा गति रहती तो चंद्रयान इसे पार कर जाताइसके लिए इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान की गति को कम करके 2 या 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड किया इस गति की वजह से वह चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ पाया अब धीरे-धीरे चांद के चारों तरफ उसके ऑर्बिट की दूरी को कम करके दक्षिणी ध्रुव के पास पर लैंड कराया जाएगा

कई स्पेस एजेंसियां निराश, लेकिन भारत के इसरो कामयाबी की डगर पर
आपको बता दें कि अभी तक कई देशों या स्पेस एजेंसियों ने सीधे चंद्रमा की ओर अपने रॉकेट के जरिए स्पेसक्राफ्ट भेजा। लेकिन उन्हें निराशा ज्यादा मिली तीन मिशन में एक फेल हुआ लेकिन भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने जो रास्ता और तरीका चुना है, उसमें फेल होने की आशंका बेहद कम है यहां दोबारा मिशन पूरा करने का चांस है

इस बार इसरो ने जो यंत्र लैंडर में लगाया गया है, उसका नाम है लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर जमीन पर उतरते समय थ्रीडी लेजर फेंकता है यह लेजर जमीन से टकराकर वापस यह बताता है कि सतह कैसी है; ऊंची-नीची, ऊबड़-खाबड़ इसके आधार पर वह लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव करता है

बाकी दो दिशाओं में जो लेजर जाते हैं, वो ये देखते हैं कि कहीं सामने या पीछे की तरफ कोई ऊंची चीज तो नहीं है, जिससे लैंडर के टकराने का खतरा हो. इसके साथ ही काम करता है LHVC जो जमीन की नीचे के हिस्से की तस्वीर लेता है वह भी गति में ताकि लैंडर के उतरने और हेलिकॉप्टर की तरह हवा में तैरते रहने की गति पता चल सके साथ ही खतरों का अंदाजा हो सके

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