लखनऊ /अलीगढ़
भाजपा मिशन-2024 के लिए पूरी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। डा.तारिक मंसूर (Tariq Mansoor) को पार्टी की राष्ट्रीय टीम में शामिल कर अपना खास चेहरा बनाना इसी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार को अपनी जो टीम घोषित की है उसमें तारिक मंसूर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। तारिक मंसूर पसमांदा मुस्लिम समुदाय से आते हैं और वर्तमान में वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं। इससे पहले वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के वाइस चांसलर रहे।
आपको ध्यान होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद पीएम नरेंद्र मोदी का एक बड़ा बयान सामने आया था कि जिन लोगों ने मुस्लिम समाज को केवल वोट बैंक समझ रखा है अब उसमें छेद करने का समय आ गया है। यानी भाजपा तभी से इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है और डा.तारिक मंसूर (Tariq Mansoor) की नियुक्ति इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
दरअसल देश में मुसलमानों की कुल आबादी में करीब 85 फीसदी पसमांदा हैं जबकि15 फीसदी उच्च जाति के मुसलमानों की आबादी है। दलित और बैकवर्ड मुस्लिम, पसमांदा वर्ग में आते हैं। मुसलमानों में पसमांदा मुस्लिम सामाजिक और आर्थिक के साथ ही राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से भी काफी पिछड़े हैं। भाजपा इन्हीं को अपने गले लगा रही है। और राष्ट्रीय स्तर पर इस पसमांदा समाज के चेहरा बनेंगे- डा.तारिक मंसूर।
डा.तारिक मंसूर 6 साल (7 मई 2017 से 02 अप्रैल 2023) तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के वाइस चांसलर रहे। डा.तारिक मंसूर पहले से ही भाजपा और आरएसएस के नेताओं के साथ करीबी रहे हैं। जब उन्होंने एएमयू के शताब्दी वर्ष समारोह में पीएम मोदी को बुलाया था तो काफी हंगामा भी हुआ था। मंसूर के बेटे की शादी में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शिरकत की थी।
2019 में जब सीएए और एनआरसी को लेकर देश में कई जगहों पर बवाल हो रहा था तो उस दौरान अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में भी CAA और NRC के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा था। तब डॉ. मंसूर ने वाइस चांसलर के रूप में कैंपस के अंदर पुलिस फोर्स बुला ली थी और यह पहली बार हुआ जब एएमयू कैंपस के अंदर पुलिस आई।
मंसूर मुस्लिमों में कुरैशी बिरादरी से आते हैं और कुरैशी को मुस्लिम समुदाय में पसमांदा कहा जाता है। AMU की वेबसाइट के मुताबिक, डॉ. मंसूर पहले जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ में सर्जरी विभाग में प्रोफेसर थे। पीएम मोदी को लेकर जब बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के रिलीज़ हुई थी तो उन्होंने बीबीसी की आलोचना करते हुए इसे ‘एजेंडा-संचालित पत्रकारिता’ बताया था। लगभग चार दशकों के अपने शिक्षण, अनुसंधान, क्लिनिकल और प्रशासनिक अनुभव के साथ, उनके पास 107 पब्लिकेशन हैं और उन्होंने 58 पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों की थीसिस का पर्यवेक्षण किया है।
डॉ. मंसूर को प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2023 के लिए भारत सरकार की पद्म पुरस्कार समिति के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। वह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य भी रह चुके हैं। इसके अलावा भारतीय प्रबंधन संस्थान (लखनऊ) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल रहे हैं। वह मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन (अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार) के शासी निकाय और अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय निगरानी समिति, शिक्षा मंत्रालय में भी डॉ. मंसूर पदासीन रहे हैं। इसके अलावा वह शिक्षा मंत्रालय में भी विभिन्न समीतियों में काम कर चुके हैं।
पसमांदा मुसलमानों को लेकर बीजेपी की रही है कवायद
पसमांदा मुसलमानों को लेकर बीजेपी की कवायद लंबे समय से चली आ रही है, जिसमें लाभार्थी सम्मेलन से लेकर मन की बात का उर्दू रूपांतरण और जनसंपर्क अभियान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं, लेकिन इस बात को धार तब मिली, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने भोपाल में बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पसमांदा समाज के मुद्दों को खुले तौर पर उठाया था।
पीएम मोदी ने कहा था कि जो पसमांदा मुसलमान हैं, उन्हें आज भी बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। उन्होंने मोची, भठियारा, जोगी, मदारी, जुलाहा, लंबाई, तेजा, लहरी, हलदर जैसी पसमांदा जातियों का जिक्र करते हुए कहा था कि इनके साथ इतना भेदभाव हुआ है, जिसका नुकसान उनकी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा।
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