छा गए फिजा में अजब रंग…

सावन 

  विश्वानि देव अग्रवाल, बरेली 


स्वागत सुहावने सावन का,
छा गए फिजा में अजब रंग।
धरती अम्बर सब प्रफुल्लित,
हर मन ऑंगन में है उमंग।।

मदमस्त घटाएँ नाच उठीं,
चंहु ओर पवन लहराती है।
बादल भी करने लगे नृत्य,
बारिश संगीत सुनाती है।।
धरती ने ओढ़ी शुभ चादर
मनभावन उसके सभी रंग

बागों में मेले रुपहले,
अमुवा की डाली पर झूले।
पेंगे लेकर नभ तक जाते,
सब  संगी साथी  अलबेले।।
रिमझिम बारिश टप-टप करती,
नभ में हंसती चपला तरंग।

कलियों पर छाई जवानी है,
हर  डाली  हुई  दिवानी  है।
भंवरा – भंवरी  हैं  मस्ती में,
उनकी नित नई कहानी है।।
दोनों  कुछ  खोये-खोये  हैं,
लगते  हैं उनके अजब ढंग।

मदमस्त चल रही पुरवाई,
विरहन   बेचारी   बौराई।
लट उसके बालों की झूमे,
होठों को गालों को चूमे।।
बिन साजन के है तड़प उठा
सजनी का मन और अंग- अंग।।

(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं)
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