नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दलीलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने एक हैंडबुक जारी की है। शुक्रवार को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके लिए जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक को लॉन्च किया और जजों और वकीलों को सलाह दी कि वे आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल से बचें और उनके एवज में सुझाए गए शब्दों का अपनी दलीलों और फैसलों में उपयोग करें।
आपको बता दें कि 8 मार्च को महिला दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में हुए इवेंट में CJI ने कहा था कि कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल रुकेगा, जल्द डिक्शनरी भी आएगी। आज इसी को लेकर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक को लॉन्च किया। इसको जारी करते हुए उन्होंने कहा कि इससे जजों और वकीलों को ये समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि इस हैंडबुक में आपत्तिजनक शब्दों की लिस्ट है और उसकी जगह इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द और वाक्य सुझाए गए हैं। इन्हें कोर्ट में दलीलें देने, आदेश देने और उसकी कॉपी तैयार करने में प्रयोग किया जा सकता है। यह हैंडबुक वकीलों के साथ-साथ जजों के लिए भी है। इस हैंडबुक में वे शब्द हैं, जिन्हें पहले की अदालतों ने यूज किया है। शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकें। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।
Glossary of gender-appropriate terms in the newly-launched handbook by the Supreme Court on combating gender stereotypes#SupremeCourt #SupremeCourtofIndia #Gender pic.twitter.com/FXaC3FqwAp
— Bar & Bench (@barandbench) August 16, 2023
इस हैंडबुक में ऐसे कई शब्दों का उदाहरण भी दिया गया है जिनका इस्तेमाल दलीलों और आदेश देने के दौरान किया गया। हैंडबुक में बताया गया है कि कैसे ऐसे शब्द कानून के खिलाफ जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि जाने या अनजाने में परंपरागत रूप से कई ऐसे शब्दों का इस्तेमाल होता रहा है जिससे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है। ऐसी भाषा से बचना चाहिए। इसी में मदद करने के लिए यह हैंडबुक लॉन्च की गई है।
CJI ने इस हैंडबुक बनाने के उद्देश्य को और साफ करने के लिए उदाहरण दिए और कहा कि एक आदेश में महिला को ‘उपस्त्री’ कहकर संबोधित किया गया। इसके अलावा उन्हें ‘कीप्स’ (रखैल) जैसे शब्द से संबोधित किया गया। यह आदेश एक घरेलू हिंसा के मामले को रद्द करने के मामले में सुनाया गया था। इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। CJI का कहना है कि लीगल ग्लॉसरी से हमारी न्यायपालिका छोटी नहीं होगी और समय के साथ हम कानूनी भाषा को लेकर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि हम भाषा को विषय और चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं। इससे पहले LGBTQ को लेकर भी हैंडबुक लॉन्च की गई थी। इसमें कई अनुचित शब्दों से बचने के बारे में बताया गया था।
इस टीम ने तैयार की शब्दावली
कानूनी शब्दावली को कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है। इसमें रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन शामिल थीं, जो फिलहाल कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेम्बर हैं।
बता दें कि स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने भी जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में लिए गए फैसलों की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। उनके यह बात कहने पर सीजेआई ने हाथ जोड़कर उनका धन्यवाद दिया था। सुप्रीम कोर्ट 9423 आदेशों को क्षेत्रीय भाषाओं में अपलोड कर चुका है। वहीं सीजेआई ने कहा था कि टारगेट है कि 35 हजार मुख्य फैसलों का अनुवाद किया जाए। यह हिंदी, उड़िया, गुजराती, तमिल, असमिया, खासी, गारो, पंजाबी, नेपाली और बंगाली के अलावा अन्य भाषाओं में उपलब्ध होगा।
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