अटल जी; अटल थे, अटल हैं, अटल ही रहेंगे…

अटलजी जैसा न कोई था न कोई होगा। अटलजी को वास्तव में अगर जानना है तो उनकी कालजयी कविताओं को पढ़कर भी जाना जा सकता है। वे हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। अटलजी बहुत दूरदर्शी थे। समय-समय पर उनकी कही गयीं बातें आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायी हैं।  नपी-तुली और बेबाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके।


आज नई हवा  में अटलजी पर प्रस्तुत है यह विशेष सामग्री :




मेरी बात गांठ बांध लें। आज हमारे कम सदस्य होने पर आप (कांग्रेस) हंस रहे हैं। लेकिन वो दिन आएगा  जब पूरे भारत में हमारी सरकार होगी , उस दिन देश आप पर हंसेगा और आपका मजाक उड़ाएगा।





सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगीं – जाएंगीं , पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी…मगर ये देश रहना चाहिए…इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए ।



कुछ रिश्तों को नाम देना जरूरी नहीं , उनका होना ही काफी है ।






लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।

पख्तूनों पर, गिलगित पर है गमगीन गुलामी का साया।।

बस इसलिए तो कहता हूं, आजादी अभी अधूरी है।

कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है।।

दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखण्ड बनाएंगे।

गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएंगे।।

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें,बलिदान करें।

जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें ।।







हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पर लिखता ही जाता हूं




 




हे प्रभु!

मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना

गैरों को गले ना लगा सकूं,

इतनी रुखाई कभी मत देना







जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आजमा।

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाकी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज तूफान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का कायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफान का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।




 

अटल बिहारी वाजपेयी जी की जीवन यात्रा

जन्म : 25 दिसंबर 1924, ग्वालियर


निधन : 16 अगस्त 2018


तीन बार रहे प्रधानमंत्री ।  पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक,  फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।


वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे। 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष रहे।


अटलजी ने  लंबे समय तक राष्‍ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।


वह चार दशकों तक भारतीय संसद के सदस्य थे। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में शुरू किया।


2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।


अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में 5  भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया।


भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की । इसके अंतर्गत दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्गों से जोड़ा गया। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में भारत में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ इतना केवल शेरशाह सूरी के समय में ही हुआ था।


वाजपेयी अपने पूरे जीवन अविवाहित रहे। उन्होंने लंबे समय से दोस्त राजकुमारी कौल और बी॰एन॰ कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया।







Concept & Content: Yogendra Gupta
Presentation: Tanmay Gupta



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