भरतपुर
भरतपुर जिले के कामां कस्बे में तीर्थराज विमल कुंड स्थित चामड़ माता मंदिर के पास खुदाई में जो दो प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं निकली थीं, उनकी अब पहचान कर ली गई है। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने शनिवार को इसके बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रतिमाएं करीब एक हजार साल पुरानी हैं और दोनों प्रतिमाएं लकुलीश भगवान और शिवलिंग की हैं। जांच के लिए जयपुर से भी उत्खनन टीम बुलाई गई है।
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पुरातत्व व संग्रहालय विभाग के संभागीय अधीक्षक नीरज त्रिपाठी ने बताया कि ऐसी मूर्तियां कामां क्षेत्र में इससे पहले भी मिली हैं जो अजमेर म्यूजियम में रखी हुई हैं। अब 29 दिसंबर को टीले की खुदाई के दौरान मिली प्रतिमाओं में से एक मूर्ति लकुलीश भगवान की और दूसरी मूर्ति शिवलिंग की है। दोनों मूर्तियों में से एक पाशुपत सम्प्रदाय के प्रवर्तक भगवान शिव के अवतार भगवान लकुलीश की है।
भगवान लकुलीश शैव परंपरा में हठ योग और तंत्र के प्रतीक माने जाते हैं। भरतपुर जिले में उनकी मूर्ती पहली बार मिली है। पुरातत्व अधिकारियों के अनुसार दूसरी मूर्ति शिवलिंग है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार की मूर्तियां पहले भी कामां में मिली हैं। जिनके ऊपर लिंग का स्वरूप बना हुआ है। अनुमान लगाया जाता है कि जिस जगह पर खुदाई के दौरान ये मूर्तियां मिली हैं, उस स्थान पर पहले शिव मंदिर था। जहां से अभी और कई मूर्तियां मिलने की उम्मीद है। ऐसे में जांच-पड़ताल के लिए जयपुर से टीम बुलाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। इसके अलावा खुदाई में मिली दोनों मूर्तियों को भरतपुर म्यूजियम में रखवाया जाएगा।
लकुलीश भगवान शिव के 24वें अवतार
ईसा मन जाता है कि लकुलीश भगवान शिव के 24वें अवतार हैं। इन्होंने पाशुपत शैव धर्म की स्थापना की थी। दूसरी सदी में बड़ौदा के दभोई जिले के कायावरोहन गांव में लकुलीश का आविर्भाव हुआ था। लकुलीश के नाम से संप्रदाय भी चला। लकुलीश प्रतिमा की एक भुजा में लकुट और दूसरे में मातुलिंग फल अंकित होता है। लकुलीश मंदिरों का भारत में इतिहास मिलता है। इन प्रतिमाओं का निर्माण सातवीं सदी से शुरू हुआ। शिव मंदिरों में लकुलीश देवता के रूप में पूजे जाते थे।
गुजरात, पूर्वी और दक्षिण भारत में मिलती हैं भगवान लकुलीश की मूर्तियां
भगवान लकुलीश की मूर्तियां गुजरात, पूर्वी और दक्षिण भारत में मिलती है। राजस्थान में मेवाड़ और झालावाड़ में भी मिली है। मथुरा में गुप्तकालीन स्तंभ पर भी लकुलीश के प्रमाण मिले हैं जिससे ब्रज क्षेत्र में पाशुपत सम्प्रदाय की उपस्थिति प्रमाणित होती है। इसके साथ ही शिवलिंग के चारों ओर त्रिदेव सहित देवताओं का अंकन लिंग महात्म्य को दर्शाता है, जो सनातन परम्परा में शिवलिंग की सर्वोच्चता को इंगित करता है। ब्रज क्षेत्र में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को विध्वंस करने के पश्चात शेष बचे अवशेषों को खंडित कर दिया था, जो अब खुदाई में मिल रहे हैं।
जयपुर से बुलाई टीम
उत्खनन अधिकारी की टीम को जयपुर से कामां बुलाया जा रहा है, जो टीले की खुदाई के स्थान की जांच पड़ताल करेंगे। साथ ही पता लगाएंगे कि वहां और मूर्तियां के अवशेष कहां हैं। ये प्राचीन मंदिर की मूर्तियां हैं। जिसकी पूरी जानकारी जुटाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
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