कुरुक्षेत्र
वकीलों के एक राष्ट्रीय सम्मलेन में बड़े वकीलों और जजों को लेकर मामला उठा है। समेलन में कहा गया कि कुछ बड़े वकील ही करोड़ों कमा रहे हैं और वे छोटे वकीलों के लिए स्पेस भी नहीं छोड़ते। और जज भी तारीख पर तारीख दे देते हैं।
वकीलों और जजों को लेकर यह मामला केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने उठाया और कई सवाल खड़े किए। आपको बता दें कि किरेन रिजिजू इससे पहले भी संसद में और संसद के बाहर वकीलों और जजों को लेकर अपनी राय देते रहे हैं। इस बार उन्होंने वकीलों की कमाई और जजों की कार्यशैली का मुद्दा हरियाणा के कुरुक्षेत्र में चल रहे अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 16वें राष्ट्रीय सम्मेलन में उठाया। 28 दिसंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के 500 से अधिक जिलों के लगभग 5000 वकील हिस्सा ले रहे हैं। सम्मलेन की थीम “75 साल के पुनरुत्थान भारत-कानून और न्याय की बदलती रूपरेखा” रखी गई है।
इसी सम्मलेन में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक बार फिर जजों और वकीलों के कामकाज के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े किए। रिजिजू ने कहा कि अदालतों में पेंडिंग मामलों की भरमार है। कुछ वकील तारीख मांगते रहते हैं और कुछ जज उनको तारीख देते भी रहते हैं। ऐसे में जिन लोगों पर न्याय देने की जिम्मेदारी है, वे न्याय देने में सक्षम नहीं रहते। न्याय देने में देरी नहीं करनी चाहिए।
रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकील ऐसे हैं, जिनकी तारीखें पहले आती हैं। कुछ वकील कहते हैं कि अगर उन्हें केस मिलेगा, तो वे जीतकर दिखा देंगे। रिजिजू ने ये भी कहा कि कुछ वकील एक बार की पेशी के लिए 30 से 40 लाख की मोटी फीस लेते हैं और कुछ वकीलों के पास काम नहीं होता। जबकि सबके लिए एक जैसे नियम कायदे हैं, तो फिर ऐसा क्यों है?
किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि कुछ वकील हैं, जो सारे बड़े केस ले लेते हैं और उनसे करोड़ों की कमाई करते हैं। बड़े वकीलों को सारा स्पेस खुद नहीं लेना चाहिए। उन्हें छोटे वकीलों के लिए भी जगह छोड़नी चाहिए। केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वकील निचली अदालतों में भी जाकर प्रैक्टिस कर सकते हैं। आखिर कोर्ट तो कोर्ट होता है।
किरेन रिजिजू इससे पहले भी संसद में अदालतों के बारे में बयान देकर चर्चा में रहे हैं। कोर्ट में होने वाली छुट्टियों के मसले पर उन्होंने सवाल उठाए थे। माना जा रहा है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच ये टकराव की स्थिति है। पहले भी मोदी सरकार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कानून लाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही संवैधानिक है। जबकि, कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत साल 1993 से हुई थी। उससे पहले जजों की नियुक्ति केंद्र सरकार ही करती रही थी।
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