राजस्थान के समायोजित शिक्षाकर्मियों ने फिर लगाई ये गुहार | बोले- हमारे हितों के साथ हो रहा है कुठाराघात 

जयपुर 

राजस्थान के हजारों समायोजित शिक्षाकर्मियों ने प्रदेश की गहलोत सरकार से एकबार फिर अपने हितों का ध्यान रखने की गुहार लगाई है और कहा है कि अपने पिछले कार्यकाल में  तत्कालीन अनुदानित महाविद्यालयों व विद्यालयों के शिक्षा कर्मियों को राजस्थान स्वेच्छाया ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम 2010 के अन्तर्गत राजकीय सेवाओं में समायोजन किया गया था। लेकिन एकबार फिर उनके हितों के साथ कुठाराघात किया जा रहा है।

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राजस्थान समायोजित शिक्षाकर्मी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सरदारसिंह बुगालिया ने संघ के सभी सदस्यों से अपील की है कि वह अपने-अपने जिलों से सरकार तक अपनी समस्या को पहुंचाएं। बुगालिया ने एक बयान में कहा कि समायोजन हमारे अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के पदों पर संधारित वेतन भत्तों व नियुक्ति तिथि के आधार पर किया गया। उसी आधार पर छठा, सातवां वेतनमान भत्ते आदि निर्धारित कर दिये गये। सीएल, पीएल, चिकित्सा सुविधा आदि का निर्धारण तथा आश्वासित केरियर प्रोग्रेस (एसीपी) का लाभ भी उसी पर दिया गया। लेकिन अब पुरानी पेंशन के लाभ को लेकर समायोजित शिक्षकर्मियों में आक्रोश बढ़ रहा है।

बुगालिया ने कहा कि प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालयों, बोर्डों व स्वायत्तशासी संस्थाओं के कर्मचारियों सहित राज्य के लाखों कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ दिया। किन्तु प्रदेश के समायोजित शिक्षाकर्मियों को प्रथम नियुक्ति तिथि अनुदानित पद पर से पुरानी पेंशन का लाभ नहीं दिया गया। इस कारण समायोजित शिक्षा कर्मियों का एक भाग जो 10 वर्ष 2011 से पूर्ण कर सेवा निवृत्त हो रहा है, वह अपूर्ण पेंशन प्राप्त कर रहा है तथा जिन कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 2011 जुलाई के बाद 10 वर्ष से पूर्व ही हो गई, वे पुरानी पेंशन के लाभ से पूर्णतया वंचित हैं। जबकि पेंशन सम्बन्धी नियम पूर्व में ही विद्यमान थे। किन्तु उनकी अनदेखी कर नये नियम आरवीआरईएस नियम बनाकर समायोजित शिक्षाकर्मियों के हितों पर कुठाराघात किया गया।

आपको बता दें कि प्रदेश के समायोजित शिक्षाकर्मियों ने पुरानी पेंशन न देने के निर्णय के विरुद्ध राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खण्डपीठ में वाद दायर कर दिया था। इस पर राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर खण्डपीठ ने समायोजित शिक्षाकर्मियों को पुराना कर्मचारी मानकर 1 फरवरी, 2018 को प्रथम नियुक्ति तिथि से राजस्थान सिविल पेंशन नियम 1996 के अन्तर्गत पुरानी पेंशन देने के निर्देश राज्य सरकार को दिये। राज्य सरकार ने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की। लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने इस एसएलपी को  निरस्त करते हुए 13 सितम्बर, 2018 को उच्च न्यायालय के निर्णय से सहमति प्रगट की तथा पुरानी पेंशन हेतु राज्य सरकार को निर्देशित किया। इसके बावजूद राज्य सरकार ने राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खण्डपीठ में पुनर्विचार याचिका दायर कर मामले को फिर लटका दिया।

बुगालिया ने बताया कि समायोजित शिक्षाकर्मियों ने उच्च न्यायालय के आदेशानुसार समस्त पी. एफ. राशि के मय 6 प्रतिशत ब्याज के साथ करोड़ों रुपये के चैक राज्य सरकार को जमा कराये थे। किन्तु राज्य सरकार द्वारा उनमें से कुछ चैक गंगानगर के संग्रहित किये। बाकी चैक कालातीत हो गये। उन्होंने कहा प्रदेश के समायोजित शिक्षाकर्मी पुनः करोड़ों रुपये के नये चैक राजकोष में जमा कराने को तैयार हैं। उन्होंने सर्कार पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अन्य बोर्डों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य संस्थाओं से ऐसी कोई राशि नहीं ली जा रही और उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा करना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।

बुगालिया ने सरकार से मांग की कि समायोजित शिक्षाकर्मियों को अनुदानित पद पर नियुक्ति की तिथि से पुरानी पेंशन का लाभ दिया जाए और सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई अपनी पुनर्विचार याचिका को वापस ली जाए।

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