कर्मचारियों को तबादले के लिए नेताओं की सिफारिश अब पड़ेगी भारी, डिजायरों से परेशान हुई केंद्र सरकार, उठाया ये कदम

नई दिल्ली 

तबादले के लिए नेताओं की सिफारिश अब केंद्र के सरकारी कर्मचारियों को भारी पड़ सकता है। वजह ये है कि केंद्र सरकार कर्मचारियों द्वारा दे जाने वाली नेताओं की सिफारिशों से परेशान हो उठी है। इसको देखते हुए अब वह ऐसे कर्चारियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने के मूड में है। फ़िलहाल डीओपीटी ने सभी मंत्रालयों एवं विभागों को ऐसे कर्मियों के नाम एक चेतावनी पत्र जारी कर दिया है

कई विभागों में आ रहे हैं मंत्रियों एवं सांसदों के पत्र
आपको बता दें कि केंद्र सरकार के कई विभागों में सिफारिशी पत्र आ रहे हैं। इनमें कर्मियों की जांच में नरमी बरतना, उनकी जल्दी पदोन्नति, मनमानी पोस्टिंग और अंतर-संवर्ग स्थानांतरण जैसे अनुरोध शामिल होते हैं। कर्मचारियों को जब लगता है कि उनका बॉस ज्यादा कड़क है तो वे सिफारिशी पत्र लिखवाने की बजाए, सांसद और मंत्री से फोन करा देते हैं। इससे वे कार्रवाई से बच जाते हैं। वजह, उनके खिलाफ ‘केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964’ के उल्लंघन का सीधा मामला नहीं बनता। हालांकि अधिकांश केसों में खासतौर पर सीएसएस संवर्ग में एएसओ के ग्रेड में विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के संबद्ध/बाहरी कार्यालयों में व्यक्तिगत/चिकित्सा आधार पर कई अंतर-संवर्ग स्थानांतरण के लिए सांसदों के अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं।

ऐसे में इस पर अंकुश लगाने के लिए को चेतावनी दी है कि डीओपीटी ने सभी मंत्रालयों एवं विभागों को ऐसे कर्मियों के नाम एक चेतावनी पत्र जारी  करते हुए कहा है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकार के अधीन अपनी सेवा से संबंधित मामलों के संबंध में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी वरिष्ठ प्राधिकारी पर कोई राजनीतिक या अन्य बाहरी प्रभाव डालने या लाने का प्रयास  करेगा तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964′ का उल्लंघन
केंद्र सरकार का मानना है कि इस तरह से नेताओं की सिफारिश लेकर आना  ‘केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964’ का उल्लंघन है। केंद्र ने कहा है एएसओ के इन अनुरोधों को मंत्री/संसद सदस्य (लोकसभा या राज्य सभा)/अन्य नामित प्राधिकारी से उनके अनुकूल विचार के लिए अग्रेषित किया जा रहा है। उक्त आचरण स्पष्ट रूप से सीसीएस (आचरण नियम), 1964 के नियम 20 का उल्लंघन है।

केंद्र सरकार ने आगाह किया है, ‘कोई भी सरकारी कर्मचारी, अपनी सेवा से संबंधित मामलों के संबंध में स्व: हितों को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी वरिष्ठ प्राधिकारी पर कोई राजनीतिक या अन्य बाहरी प्रभाव डलवाने का प्रयास नहीं करेगा। ऐसे सभी मामलों में ‘केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964’ के मौजूदा नियमों के अनुसार संबंधित कर्मी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

विजिलेंस या विभागीय जांच को प्रभावित करने को भी ले रहे हैं नेताओं की मदद
डीओपीटी ने पत्र में कहा है कि कई बार किसी कर्मी के खिलाफ विजिलेंस या विभागीय जांच चल रही होती है तो उस मामले में राहत पाने के लिए भी जन प्रतिनिधियों की सहायता ली जाती है। डीओपीटी ने कहा है, मंत्रालयों के सक्षम प्राधिकारियों ने इस मामले में गंभीरता से विचार किया है। सभी कर्मियों को सूचित किया जाता है कि वे ऐसे सभी कृत्यों पर उनके खिलाफ मौजूदा नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकार के अधीन अपनी सेवा से संबंधित मामलों के संबंध में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी वरिष्ठ प्राधिकारी पर कोई राजनीतिक या अन्य बाहरी प्रभाव डालने या लाने का प्रयास नहीं करेगा। अनेक कर्मचारी अपने तबादले के लिए सांसदों के पत्रों की मदद लेते हैं।

ये हैं ‘केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम
के. संथानम की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निरोधक समिति की सिफारिशों के आधार पर लोक सेवाओं में सत्यनिष्ठा बनाए रखने की दृष्टि से सरकारी कर्मचारियों के आचरण नियमों को संशोधित किया गया। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए आचार संहिता बनाते हुए केंद्रीय सिविल सेवाएं (आचरण) नियमावली, 1964 अधिसूचित की गई।

भारत सरकार द्वारा सभी अधिकारियों को याद दिलाया जाता है कि जन प्रतिनिधियों के साथ सम्यक शिष्टता बरतना और उन्हें सम्मान देना देश के व्यापक हित में वांछनीय है। जिन मामलों में अधिकारी, संसद सदस्यों के अनुरोध या सुझाव मानने में असमर्थ हों, उनमें अधिकारी द्वारा ऐसा न करने की असमर्थता के कारण विनम्रतापूर्वक स्पष्ट कर दिए जाएं। सांसदों से मिलना, उनके पत्रों पर कार्रवाई व शिष्टाचार से जुड़ी कई बातों का उल्लेख ‘केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964’ में किया गया है। इन नियमों में यह भी लिखा है कि कोई भी कर्मचारी अपने व्यक्तिगत मामले का समर्थन कराने के लिए संसद सदस्यों के पास न जाएं।

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