बरसी फुहार
डॉ. विनीता राठौड़
पावस ऋतु का पावन माह
मनभावन यह सावन माह
रिमझिम रिमझिम बरसाए मेह
चंहु ओर बिखराए नेह
दुल्हन जैसी धरा सजी
धारण करके चूनर धानी
सबके मन को रिझा रही
प्रकृति की हरितिमा न्यारी
पीहू पीहू पपीहरा बोले
रंग बिरंगी तितलियाँ डोले
कोयल कूके गाए मल्हार
नाचे मयूर पंख पसार
कल – कल कर बहती जल धार
रजत से झरने व नदियां हजार
सुन काले मेघों की झंकार
विरहनी रोए जार-जार
पिया मिलन की करे पुकार
शीतल सावन की फुहार
लागे जैसे दहकते अंगार
देख वृक्षों पर हिंडोले
पिया मिलन को मनवा डोले
सखियों की आई टोली
सब करती हंसी ठिठोली
पी के आने का संदेसा आया
प्रफुल्लित हो मन मुस्काया
उनके आने की आहट पाकर
खुशी में बही नैनों से अश्रुधार
रिमझिम रिमझिम बरसी फुहार
बहने लगी प्रेम-प्रीत की बयार।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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