मंद-मंद क्यों मुस्काते हो…

विश्व हास्य दिवस

विश्वानि देव अग्रवाल, बरेली 


मंद-मंद क्यों मुस्काते हो
हंसने में क्यों शर्माते हो,
खुल के हंस लो आज प्यारे
क्यों कंजूसी दिखलाते हो।

हंसने में क्या पैसा लगता
इसमें तो दिल से दिल मिलता
हंसते ही लगते हो अच्छे
चेहरा फूलों जैसा दिखता,
क्यों तुम मुंह को लटकाते हो
हंसने में क्यों शर्माते हो।

हंसना तो असली ताकत है
हंसने में अद्भुत राहत है,
हंसी बिना दिन व्यर्थ है सारा
हंसे बिना तो बस आफत है,
हंसने में क्यों घबराते हो
हंसने में क्यों शर्माते हो।

क्या भाभी जी ने है डांटा
सासु जी ने प्यार न बांटा,
साली जी ने बात नहीं की
साले न क्या है कुछ बांटा,
ये नाटक तो चलते रहते
इसमें दिल क्यों उलझाते हो
हंसने में क्यों शर्माते हो।

चिंताओं को मारो धक्का
पिओ बैठकर सुख से हुक्का,
जो प्रभु इच्छा वो ही होगा
जीवन में कर लो तुम पक्का,
बार – बार क्यों मुरझाते हो,
हंसने में क्यों शर्माते हो।

हंसना तो मुखड़े की शान
हंसता तो केवल इंसान,
हंसते नहीं पशु बेचारे
हंसना मानव की पहचान,
हंसने से क्यों कतराते हो,
हंसने में क्यों शर्माते हो।

(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं)

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