प्रेम
विश्वानि देव अग्रवाल, बरेली
प्रेम पूजा शरणागति सा है
यह बुद्धि विवेक सुमति सा है,
श्रद्धा भक्ति विश्वास सहित
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है।
निर्मल पावन पवित्र सा है
वैदेही के चरित्र सा है,
यह दिल की धड़कन श्वासें है
यह बंधु सखा मित्र सा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है!
यह नन्हीं गुड़िया जैसा है
अनुभवी एक बुढ़िया सा है,
यह तो प्यारा मासूम बहुत
अमृत की पुड़िया जैसा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है!
अधरों की मूक लहर सा है
नयनों की तीव्र नजर सा है,
यह रिक्त दिलों का पूरक है
प्रातः की सुखद प्रहर सा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है!
रिमझिम रिमझिम सावन सा है
कान्हा के कानन जैसा है,
यह शरद पूर्णिमा का चंदा
हंसते मुखरित ऑंगन सा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है
यह मादक मधुरस जैसा है
हंसती कलियों के जैसा है,
भंवरा बन मंडराता है यह
रस रूप गंध के घर सा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है!
है प्रेम शाश्वत सत्य सरल
सुन्दर ईश्वर मूरत सा है,
प्रभु का ही है पर्याय प्रेम
मेरे गुरुवर सद्गुरु सा है।
प्रभु की सुन्दरतम कृति सा है!
(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं)
——–
नोट: अपने मोबाइल पर ‘नई हवा’ की खबरें नि:शुल्क और नियमित प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें
गहलोत ने महिला का हटाया घूंघट तो खड़ा हो गया बवाल, भाजपा ने पूछा फिर ये सवाल
राजस्थान साहित्य प्रोत्साहन पुरस्कार की होगी शुरुआत, मिलेंगे 11-11 लाख, प्रशस्ति पत्र एवं शॉल