जयंती
योगेन्द्र गुप्ता
भले ही पं. जवाहर लाल नेहरू को आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का तमगा पहना दिया गया हो। पर ऐतिहासिक सच्चाई यह है कि 1943 में भारत की अंतरिम सरकार का गठन कर लिया गया था और नेताजी सुभाषचंद्र बोस इस अंतरिम सरकार के न केवल प्रधानमंत्री बने बल्कि उन्होंने बाकायदा अपना मंत्रिमंडल भी बना लिया था। योजनाएं बनाईं। ध्वज बनाया। मुद्रा जारी की। अपना बैंक बनाया। नक़्शा भी रेखांकित कर लिया। डाक टिकट जारी किए। यहां तक कि 11 देशों ने नेताजी के नेतृत्व वाली भारत सरकार को मान्यता भी दे दी। इसीलिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को भारत का पहला प्रधानमंत्री बोला जाता है।
पर कुछ तथाकथित इतिहासकारों ने इस ऐतिहासिक तथ्य को गौण कर दिया और हमें नेताजी के बारे में ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ तक ही जोर देकर पढ़ाया जाता रहा। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को खंगालने पर जानकारी मिलती है कि नेताजी ने भारत की अंतरिम सरकार का गठन कर लिया था और खुद को प्रधानमंत्री घोषित कर मंत्रिमंडल बना लिया था। अंतरिम सरकार ने स्वाधीन भारत की घोषणा कर दी थी।
पर पंडित नेहरू की ताजपोशी के मोह में इस ऐतिहासिक सच्चाई को गौण कर दिया गया। यहां तक कि उन्हें अभी तक भारत रत्न के योग्य तक नहीं समझा गया। जबकि नेताजी भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के ऐसे पराक्रमी योद्धा थे जिनके नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने कम संसाधनों के बावजूद ऐसे ब्रिटिश शासन को खुली चुनौती दी थी जिसका सूरज कभी ढलता नहीं था। यदि नेताजी की रहस्यमयी तरीके से मौत नहीं हुई होती तो भारत की आजादी की अंतिम चरण की कहानी कुछ और ही होती।




ऐसे हुआ नेताजी की अंतरिम सरकार का गठन
एक तरफ देश की आजादी के लिए भारत के अंदर आंदोलन के कई रूप देखने को मिल रहे थे। वहीं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारत की अंतरिम सरकार अपनी योजनाओं को आकार देते हुए आगे बढ़ रही थी। नेताजी ने 21 अक्टूबर,1943 को अंतरिम सरकार का गठन किया था। 16 नवम्बर,1943 को बर्लिन के स्वतंत्र भारत केन्द्र में अस्थायी सरकार की स्थापना का उत्सव भी मना था। नेताजी ने अपनी अंतरिम सरकार की राजधानी पोर्टब्लेयर को बनाया था जबकि निर्वासित राजधानी रंगून थी। इस सरकार ने भाषा हिन्दुस्तानी घोषित की। इसके पीछे नेताजी की यही सोच रही होगी कि समस्त भारतीय भाषा-भाषी इस आंदोलन में रचबस जाएं। भाषा के मामले में उनका यही एक मंत्र था जिससे सभी भाषा -भाषी लोग आजाद हिंद फौज से जुड़ते चले गए।
सरकार को चलाने को लेकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सोच एकदम साफ और स्पष्ट थी। योजनाओं का पूरा खाका था। हर क्षेत्र की उन्होंने योजनाएं बनाईं। अपना ध्वज बनाया। रुपए को मुद्रा घोषित किया। अपना बैंक बनाया। डाक टिकट तैयार करवाए। यहां तक कि अपनी अंतरिम सरकार की गुप्तचर सेवा भी गठित कर दी थी। हालांकि डाक टिकट जारी नहीं हो पाए थे। अस्थायी सरकार की घोषणा करने के बाद भारत के प्रति निष्ठा की शपथ ली गई। नेताजी ने शपथ लेते हुए कहा ‘ईश्वर के नाम पर मैं ये पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ निवासियों को स्वतंत्र कराऊंगा। अपने जीवन की आखिरी सांस तक स्वतंत्रता की पवित्र लड़ाई लड़ता रहूंगा।’

11 देशों ने तुरंत दी थी अंतरिम सरकार को मान्यता
सुभाषचंद्र बोस ने अपनी अंतरिम सरकार को समर्थन जुटाने के लिए जापान, जर्मनी और सिंगापुर सहित कई देशों की यात्राएं की। इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली। जब तक नेताजी जीवित रहे सात देशों ने उनकी अंतरिम सरकार को समर्थन घोषित कर दिया था। बोस की इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मांचुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी
नेताजी और समर्थन जुटाने के लिए अन्य देशों की यात्राएं कर रहे थे। सरकार को जापान ने आर्थिक, सामरिक और नैतिक हर तरह की मदद की। जापान नेताजी से बहुत प्रभावित था। वहां नेताजी की प्रतिमा आज भी स्थापित है। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिए। नेताजी ने उन द्वीपों को नया नाम दिया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा गया। 30 दिसंबर 1943 को इन द्वीपों पर आजाद भारत का झंडा भी फहरा दिया गया।

ये था नेताजी का मंत्रिमंडल
प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेश मंत्री: सुभाष चंद्र बोस
महिला संगठन: कैप्टेन श्रीमती लक्ष्मी
प्रचार और प्रसारण: एसए अय्यर
वित्त मंत्री: लै. कर्नल एसी चटर्जी
सशस्त्र सेना के प्रतिनिधि: लै. कर्नल अजीज अहमद, लै.कर्नल एनएस भगत, लै. कर्नल जेके भोंसले, लै. कर्नल गुलजार सिंह, लै. कर्नल एम जैड कियानी, लै. कर्नल एडी लोगनादन, लै. कर्नल एहसान कादिर, लै. कर्नल शाहनवाज
उच्चतम परामर्शदाता: रासबिहारी बोस, करीम गनी, देवनाथ दास, डीएम खान, यलप्पा, जे थीवी
परामर्शदाता: सरकार इशर सिंह
कानूनी सलाहकार: एएस सरकार

जानें नेताजी की जीवन यात्रा
- जन्म: 23 जनवरी, 1897 को जानकी नाथ बोस और श्रीमती प्रभावती देवी के घर।
- कॉलेज शिक्षा: 1913 में। कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।
- इंटरमीडिएट: 1915 मेंप्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में ब्रिटिश प्रोफेसर के साथ दुर्व्यवहार के आरोप में निलंबित।
- 1917 : स्कॉटिश चर्च कॉलेज में फिलॉसफी ऑनर्स में प्रवेश लिया।
- 1919 : फिलॉसफी ऑनर्स में प्रथम स्थान अर्जित करने के साथ आईसीएस परीक्षा देने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए।

- 1920 : सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक के साथ आईसीएस की परीक्षा न केवल उत्तीर्ण की, बल्कि चौथा स्थान भी प्राप्त किया।
- 1920 : कैंब्रिज विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठित डिग्री मिली।

- 1921 : अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। एक अगस्त, 1922 को वे जेल से बाहर आए और देशबंधु चितरंजनदास की अगुवाई में गया कांग्रेस अधिवेशन में स्वराज दल में शामिल हो गए।
- 1923 : भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। बंगाल कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। देशबंधु की पत्रिका ‘फॉरवर्ड’ का संपादन करना शुरू किया।
- 1924 : स्वराज दल को कोलकाता म्युनिसिपल चुनाव में भारी सफलता मिली। देशबंधु मेयर बने और सुभाषचंद्र बोस को मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनोनीत किया गया। सुभाष के बढ़ते प्रभाव को अंग्रेज सरकार बरदाश्त नहीं कर सकी और अक्टूबर में एक बार फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
- 1927 : नेताजी, जवाहरलाल नेहरू के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के साधारण सचिव चुने गए।
- 1928 : स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन के दौरान स्वैच्छिक संगठन गठित किया। नेताजी इसमेँ जनरल ऑफिसर-इन-कमांड चुने गए।
- 1930 : उन्हें जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने कोलकाताके मेयर का चुनाव जीता।
- 1931 : 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह को फांसी दे दी गई, जो कि नेताजी और महात्मा गांधी में मतभेद का कारण बनी।
- 1932-1936 : नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में फेल्डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की।
- 1936 : 13 अप्रैल, 1936 को भारत आने पर मुम्बई में गिरफ्तार कर लिया गया।
- 1936-37 : रिहा होने के बाद यूरोप में ‘इंडियन स्ट्रगल’ का प्रकासन शुरू किया।
- 1938 : हरिपुर अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए।
- 1939 : महात्मा गांधी के उम्मीदवार सीतारमैया को हराकर एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष बने। बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
- 1940 : उन्हें नजरबंद कर दिया गया। इस बीच उपवास के कारण उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- 1941: 7 जनवरी, 1941 को वे अचानक गायब हो गए और अफगानिस्तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंच गए।
- 1941 : 9 अप्रेल, 1941 को जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा जिसमें एक्सिस पॉवर और भारत के बीच परस्पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्वतंत्र भारत केंद्र और स्वतंत्र भारत रेडियो की स्थापना की।

- 1943 : वे नौसेना की मदद से जापान पहुंचे और टोकियो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया। 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की।
- 1944 : आजाद हिन्द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्जे में ले लिया।
- 1945 : दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने परमाणु हमले के बाद हथियार डाल दिए। इसके कुछ दिनों बाद नेताजी की हवाई दुर्घटना में मारे जाने की खबर आई। हालांकि इस बारे में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं प्राप्त हुए हैं।

- जीवन साथी: एमिली शेंकल1937 में विवाह
- बच्चे: अनिता बोस फाफ
- भाई: शरतचन्द्र बोस, शिशिर कुमार बोस भतीजा
- कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था।
- -1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहां जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष बोस की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नजरबन्द थे।
आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूर्ण होने पर इतिहास मे पहली बार वर्ष 2018 में भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले पर तिरंगा फहराया। 23 जनवरी 2021 को नेताजी की 125वीं जयन्ती है जिसे भारत सरकार ने ‘पराक्रम दिवस‘ के रूप में मनाने का निर्णय किया है।
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