आज ‘नई हवा’ के इस अंक में हम बताने जा रहे हैं ऐसे गांव के बारे में जहां क्या बूढ़ा, क्या बच्चा; हर कोई फर्राटे से संस्कृत में बोलता है। और यह गांव भी किसी हिन्दी भाषी राज्य में नहीं बल्कि दक्षिण के राज्य में स्थित है। जब आप इस गांव में प्रवेश करेंगे तो प्रवेश करते ही संस्कृत को लेकर अद्भुत और दिल को सुकून पहुंचाने वाला नजारा देखने और सुनने को मिलेगा। गांव वालों की वेशभूषा देखकर ही आपको लगेगा कि चाणक्य के दौर वाले भारत में पहुंच गए हैं। हर घर से वैदिक मंत्रों की आवाज सुनाई देती है। ऐसा ही एक दूसरा गांव और है जो हिन्दी भाषी राज्य में स्थित है। इसमें भी सभी फर्राटे से संस्कृत बोलते हैं। इन दोनों गांवों में हर दुकानदार, किसान, महिलाएं यहां तक कि स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी फर्राटेदार संस्कृत में बात करते हैं।
पहले बात करते हैं दक्षिण के गांव की। इस गांव का नाम नाम है- मत्तूर और यह कर्नाटक में शिवमोग्गा के पास स्थित है। मत्तूर एक कृषि प्रधान गांव है, जहां धान और सुपारी की खेती होती है। इस गांव में हर कोई हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत में बात करता है। इस गांव के आसपास के लोग कन्नड़ बोलते हैं। लेकिन इस गांव का क्या बूढ़ा, क्या बच्चा सभी फर्राटे से संस्कृत बोलते हैं। आप भी इस गांव में पहुंचेंगे तो आपको नमो नम:, नमस्कारम् जैसे शब्दों से आपका स्वागत होगा। मत्तूर गांव कनार्टक से 300 किमी दूर तुंग नदी के किनारे बसा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस गांव की आबादी कुल 3000 है। दिलचस्प यह है कि इसे भारत का अंतिम संस्कृत भाषी गांव कहा जाता है। यहां हर शख्स संस्कृत से अच्छी तरह वाकिफ है। यहां तक कि दीवारों पर भित्ति चित्र भी संस्कृत में लिखे गए हैं। सिर्फ पहनावे को ही नहीं इस गांव के लोगों ने दुनिया की सबसे प्राचीनतम सभ्यता और भाषा को भी सहेज कर रखा हुआ है।
पहले बात करते हैं दक्षिण के गांव की। इस गांव का नाम नाम है- मत्तूर और यह कर्नाटक में शिवमोग्गा के पास स्थित है। मत्तूर एक कृषि प्रधान गांव है, जहां धान और सुपारी की खेती होती है। इस गांव में हर कोई हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत में बात करता है। इस गांव के आसपास के लोग कन्नड़ बोलते हैं। लेकिन इस गांव का क्या बूढ़ा, क्या बच्चा सभी फर्राटे से संस्कृत बोलते हैं। आप भी इस गांव में पहुंचेंगे तो आपको नमो नम:, नमस्कारम् जैसे शब्दों से आपका स्वागत होगा। मत्तूर गांव कनार्टक से 300 किमी दूर तुंग नदी के किनारे बसा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस गांव की आबादी कुल 3000 है। दिलचस्प यह है कि इसे भारत का अंतिम संस्कृत भाषी गांव कहा जाता है। यहां हर शख्स संस्कृत से अच्छी तरह वाकिफ है। यहां तक कि दीवारों पर भित्ति चित्र भी संस्कृत में लिखे गए हैं। सिर्फ पहनावे को ही नहीं इस गांव के लोगों ने दुनिया की सबसे प्राचीनतम सभ्यता और भाषा को भी सहेज कर रखा हुआ है।
ऐसे शुरू हुई संस्कृत बोलने की प्रथा
दरअसल 1981 में संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए गठित संस्था संस्कृत भारती ने मत्तूर में 10 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया था। इसमें पड़ोसी उडुपी में पेजावर मठ के संत समेत कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया था। जब संत ने संस्कृत को संरक्षित करने के लिए मत्तूर में गांव वालों के उत्साह को देखा, तो उन्होंने तुरंत संस्कृत भाषा को अपनाने की गुजारिश की थी। जिसे स्थानीय लोगों ने दिल से स्वीकार कर लिया था। कहा जाता है कि इस गांव में प्राचीन काल से ही संस्कृत बोली जाती है। हालांकि एक समय था, जब लोगों ने कन्नड़ बोलना शुरू कर दिया था, लेकिन पेजावर मठ के स्वामी की सलाह के बाद यहां के लोग संस्कृत भाषा बोलते आ रहे हैं।
गांव वालों की वेशभूषा देखकर ही आपको लगेगा जैसा कि आप चाणक्य के दौर में आ गए हैं। यहां सिर्फ पहनावे को ही नहीं बल्कि गांव के लोगों ने दुनिया की प्राचीन सभ्यता और भाषा को आज तक सहेजे रखा है। पर ऐसा नहीं है कि यहां के लोग अंग्रेजी या हिंदी नहीं जानते। वह संस्कृत का हिंदी और अंग्रेजी में अच्छा अनुवाद कर सकते हैं। बच्चों को वेदों का भी अच्छा ज्ञान है। इस गांव की पारंपरिक भाषा संकेती है, लेकिन हर घर में संस्कृत का विद्वान आपको जरूर मिलेगा। जितनी फर्राटेदार संस्कृत यह बोलते हैं उतने ही फर्राटे से अंग्रेजी में भी बोलते हैं।
विदेशों से संस्कृत सीखने आते हैं लोग
गांव में संस्कृत सिखाने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता। इस गांव में देश के कई शहरों से लोग संस्कृत सीखने आते हैं और केवल भारत के शहरों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग यहां संस्कृत और वेद की शिक्षा लेने आते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गांव में रहनेवाले गुरुओं का दावा है कि वो महीने से भी कम समय में संस्कृत सिखा सकते हैं, लेकिन इसके लिए पूरा समय गुरुकुल में देना होगा।
हर घर से इंजीनियर-डॉक्टर
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस गांव में हर घर से एक इंजीनियर है। इस गांव के कई युवा डॉक्टर भी हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि संस्कृत सीखने से गणित और तर्कशास्त्र का ज्ञान बढ़ता है। ये दोनों विषय आसानी से समझ आते हैं। ऐसे में यहां के युवाओं का रुझान धीरे-धीरे आईटी इंजीनियरिंग की ओर गया और यहां कई घरों के युवा इंजीनियर हैं। वैदिक गणित सीखने के बाद यहां के युवाओं को कैलकुलेटर की भी जरूरत नहीं पड़ती। वहीं संस्कृत सीखने से कंप्यूटर की कूट भाषाएं सीखने में मदद मिलती है। गांव के कई युवा एमबीबीएस और इंजीनियरिंग के लिए विदेश भी जाते रहे हैं।
न कोई होटल और न ही गेस्ट हाउस
इस गांव में आपको न कोई होटल मिलेगा और न ही गेस्ट हाउस। यहां अतिथियों को घरों में ही ठहराने की परंपरा चली आ रही है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि वैदिक परंपराओं वाला यह गांव किसी मायने में पिछड़ा है, बल्कि यहां 21वीं सदी की सारी तकनीकें मौजूद हैं। युवा मोबाइल और इंटरनेट के जरिये दुनियाभर का ज्ञान एक्सप्लोर करते भी दिख जाएंगे।
मध्य प्रदेश में भी एक गांव
कर्नाटक के अलावा मध्य प्रदेश में भी एक ऐसा गांव है, जहां के रहने वाले लोग संस्कृत बोलते हैं। इस गांव का नाम है झिरी जो मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर स्थित है। गांव ने देश में अपनी अलग पहचान बनाई है। इस गांव में रहने वाला हर शख्स संस्कृत में ही बात करता है। यहां के लोगों ने संस्कृत भाषा को पूरी तरह से अपने जीवन में ढाल लिया है। गांव की दीवारों पर संस्कृत में श्लोक लिखे हैं। यहां लोग अपने दिन की शुरुआत गुड मॉर्निंग से नहीं बल्कि नमो नम: से करते हैं।
1000 की आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं किसान, मजदूर यहां तक कि छोटे बच्चे भी संस्कृत में बात करते हैं। इसकी शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ता विमला तिवारी ने 2002 से की थी। उन्होंने गांव में संस्कृत पढ़ाना शुरू किया था। जिसके बाद धीरे-धीरे गांव के लोग इस प्राचीन भाषा के करीब आने लगे और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है। झिरी गांव के घरों के नाम भी संस्कृत में हैं। कई घरों के बाहर संस्कृत ग्राहम लिखा हुआ है। इतना ही नहीं, शादी और अन्य अवसरों पर महिलाएं संस्कृत भाषा में ही गीत गाती हैं। मध्य प्रदेश आने वाले सैलानियों के बीच भी यह गांव चर्चा का विषय बना हुआ है।
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