वीर शिरोमणि, हिन्दुआ सूरज मेवाड़ मुकुट, जयवन्ता पुत्र शिव भक्त, शेर दिल सबके संग रहते हिल-मिल। भीलों को भी गले लगाया लोहारों से भी हाथ मिलाया। ऊंच-नीच का भेद मिटाया भीलों ने कीका नाम से उन्हें बुलाया।
पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे थे शक्ति के वे पुन्ज बड़े थे। एक प्रहार में वे करते थे घोड़े संग दुश्मन के दो टुकड़े। 72 किलो का भाला थे लेते 81 किलो का कवच पहनते। रणभूमि में वे जब भी जाते विजय पताका निश्चित लहराते।
हवाओं का रुख बदलने की ताकत थे रखते चेतक को पवन वेग से वे दौड़ाते। देशभक्त थे वे अति स्वाभिमानी मंजूर नहीं थी उन्हें मुगलों की अधीनता स्वीकारनी। मान सिंह संग भोजन करना नहीं स्वीकारा हल्दीघाटी युद्ध में उसे ललकार, मुगलों को मार गिराया। चेतक संग पुत्र सम स्नेह जताया शत्रुओं को युद्ध में सदैव हराया।
विजयी केसरिया ध्वज फहराया मेवाड़ धरा को रजत सा चमकाया। जब तक धरा रहेगी और धर्म रहेगा महाराणा प्रताप का नाम अमर रहेगा। अमर रहेगी उनके शौर्य की गाथा।
( लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)