जयहिंद, आजाद हिंद फौज और सुभाष चन्द्र बोस

जयंती 

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डॉ. अलका अग्रवाल 


सुभाष चंद्र बोस एक महान राजनीतिक नेता थे।  उग्र देशभक्ति और भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति शत्रुता, उनके व्यक्तित्व का सार था। 1920 में उन्होंने  इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा में सफलता प्राप्त की, लेकिन मई 1921 में त्यागपत्र दे दिया और सक्रिय राजनीति में उतर पड़े । उनमें कष्ट सहने की असीम क्षमता थी। उन्हें 10 बार जेल में डाला गया और कुल मिलाकर 8 वर्ष तक वे जेल में रहे। उन्हें समझौतावादी रवैया बिल्कुल पसंद नहीं था और वे विद्रोही प्रवृत्ति के थे। वे एक निर्भीक योद्धा थे और उनका स्थान विश्व के महानतम देशभक्तों में है। वे आंदोलनकारी होने के साथ-साथ उग्र संघर्ष कर्ता और क्रांतिकारी नेता थे । इसके साथ ही वे महान वक्ता भी थे। उन्हें 1938 और 1939 में लगातार दो बार ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया । शास्त्रीय अर्थ में राजनीतिक विचारक नहीं होते हुए भी बोस ने देश के राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधि और विकास के संबंध में चिंतन- मनन किया। उनकी ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक गंभीर विश्लेषण से भरी पड़ी है। उनके भाषणों में ओज के साथ ही सरलता भी देखने को मिलती है।

सुभाष चंद्र बोस ने 1923 में एक असहयोगी के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया। बाद में चित्तरंजन दास के नेतृत्व में स्वराज्य दल में सम्मिलित हो गए। वे 1925 से 1927 तक, बर्मा में नजरबंद रहे। मई 1940 में उन्होंने ‘फॉरवर्ड ब्लॉक ‘ नामक एक नए दल की स्थापना करके, देश की वामपंथी शक्तियों को संयुक्त करने का प्रयत्न किया। 1940 में वे गुप्त रूप से देश छोड़कर चले गए। मार्च 1941 में वे वायुयान द्वारा काबुल से बर्लिन पहुंच गए। देश से भाग निकलने तथा पेशावर और काबुल होकर जर्मनी जा पहुंचने की कहानी,  उनके साहस पूर्ण कार्य की वीरगाथा है। 1942 में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भयंकर प्रचार अभियान आरंभ कर दिया और विभिन्न स्थानों से अनेक वर्षों तक प्रसारण करते रहे। उन्होंने जापान पहुंचकर ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना की। उस समय भी इसमें 60,000 से अधिक भारतीय थे। 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की। लेकिन दुर्भाग्यवश 8 अगस्त 1945 को टोकियो जाते हुए मार्ग में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी इहलीला समाप्त (?) हो गई।

सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वाधीनता के पक्ष में विश्वव्यापी लोकमत तैयार करने के लिए, विदेशों में प्रचार करने में विश्वास करते थे और ऐसा उन्होंने करके दिखाया। राजनीतिक कार्यकर्ता तथा नेता के रूप में, वे ओजस्वी राष्ट्रवाद के समर्थक थे। उनकी महत्ता भारतीय इतिहास में स्थाई रूप से प्रतिष्ठित रहेगी। देश को ब्रिटिश साम्राज्यवाद की श्रृंखलाओं से मुक्त कराने के आदर्श के प्रति, उनकी लगभग उन्माद पूर्ण निष्ठा और राष्ट्र के लिए उन्होंने जो घोर कष्ट सहे, उनके कारण उन्हें सदैव राष्ट्रीय- वीर के रूप में अभिनंदित किया जाएगा। उनके द्वारा दिया गया ‘ जयहिंद’ का नारा और साहस हमारे साथ है और हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।

(लेखक राजकीय कॉलेज की सेवानिवृत्त प्राचार्य हैं)







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