श्रीगुरूनानक देव ने भारत की आध्यात्मिक परम्परा को बढ़ाया आगे

श्रीगुरूनानक देव का 552 वां प्रकाश वर्ष

गुरचरण सिंह गिल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय सिख संगत  


हम सभी के लिए परम् सौभाग्य, आनंद व शुभ अवसर का विषय है कि श्रीगुरूनानक देव जी महाराज का 552 वां प्रकाश वर्ष, जो इस कार्तिक पूर्ण मास को प्रारंभ हो रहा है, हमारे जीवन में आया है। श्री गुरुजी महाराज ने अपने जीवनकाल में लगभग 45 हजार किलोमीटर की यात्रा, हिमालय से श्रीलंका तक, मक्का मदीना, ताशकंद, ईरान, ईराक से लेकर तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश की हिम आच्छादित पहाड़ियों आदि तक की यात्रा करके तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक नेतृत्व से संवाद कर उस समय की सामाजिक कुरीतियों जो समाज को बिखराव व अंधविश्वास का रूप धारण कर उसे कमजोर कर रही थीं। उनसे उभरकर भारत की आध्यात्मिक परम्परा को आगे बढ़ाकर उसे जीवन में पुरुषार्थ व परमार्थ की प्रेरणा देकर प्रभु सुमिरन के साथ जोड़ा।

उन्होंने “कृत कर नाम जपु वंद छँक का मार्गदर्शन दिया जो आज भी वर्तमान संदर्भ में उतना ही प्रासांगिक है। साथ ही उन्होंने समाज को आत्मसम्मान के साथ जीने व जुल्म का मुकाबला करने की प्रेरणा दी वहीं तत्कालीन विदेशी आक्रांता  बाबर को यमदूत की संज्ञा देकर उसके द्वारा किए  गए अत्याचार के लिए उसकी कठोर शब्दों में निंदा की व चुनौती दी कि ऐसे आतंकी समय में भी मैं इस नश्वर काया की परवाह न करते हुए सत्य की बात कहूंगा और इस हिंदुस्तान को निश्चित ही अपने आप को संभालेगा।

इसी जागरण व बलिदान परंपरा की निरंतरता में खालसा का संत-सिपाही के रूप में अवतार हुआ जिसने काबुल कंधार तक अपना राज्य स्थापित कर विदेशी आक्रांताओं  के रास्ते सदैव के लिए बंद कर दिए  तथा देश की आजादी की लड़ाई में एक महत्ती भूमिका निभाई।

आज सारा समाज पैसे के लिए प्रतिद्वंदता व पापाचार में फंसा  हुआ है। गुरु महाराज ने कहा था कि अधिक माया पाप के बिना इकट्ठी नहीं  होती है तथा मरने पर साथ नहीं जाती है। श्री गुरूजी महाराज ने संतों व सिद्ध पुरुषों से भी यह संवाद किया कि वे केवल आत्म मोक्ष के लिए नहीं बल्कि समाज का उद्धार करने के लिए भी हैं।

श्रीगुरूजी महाराज ने हर विचारधारा व कार्यबल को सात्विक व उच्च जीवन जीने का मार्ग प्रसस्त किया था जो आज भी प्रासागिक हैं। हमें उनके इस प्रकाशवर्ष को आधार बनाकर सारे वर्ष ऐसे आयोजन करने चाहिए जिनके माध्यम से सभी वर्गों यथा प्रचार-प्रसार करना चाहिए। बालक, युवा, उद्यमी, किसान, विद्वयतजन आदि के बीच में जाकर उनके उपदेश का प्रचार प्रसार करना चाहिए।

श्री गुरुनानक देव जी महाराज अपनी चौथी उदासी के समय सख्खर भख्खर, मुलतान आदि स्थानों से होते हुए मक्का शरीफ पहुंचे। उनकी काव्य की तरफ पैर करके सोने और इस बहाने यह समझाने की खुदा तो सबतर बसतर है, हम सभी को पता ही है। श्री गुरुनानक देव जी महाराज ने मक्का शरीफ की मस्जिद के सामने बैठकर जो शब्द पढ़ा, उसका विवरण भाई मनीसिंह द्वारा लिखित जन्म साखी के पृष्ठ 4 (336) पर मिलता है जो कि राग बंसत डिण्डोल में श्री गुरूग्रंथ साहिब में 1190 पर अंकित है :

बसंतु हिंडोलू महला 1 घरू 2
1 ओ सतिगुर प्रसादि । नउ सत चउदह तीनि चारि करि महलति चारि बहाली । चारे दीवे चड्डु हथि दीए एका एका वारी ।। 1 । मिहरवान मधुसूदन माधौ ऐसी सकति तुम्हारी ||1|| रहाउ ॥ घरि घरि लसकरू पावकु तेरा घरमु करे सिकदारी धरती देग मिलै इक देरा भागु तेरा भंडारी 11211 नासाबुरू होवै फिरि मंगै नारद करे खुआरी लघु अवेरा बंदीखाना अरगण पैरि लुहारी |13|| पूंजी भार पर्दै नित मुदगर पापु करे कोटवारी भावै चंगा भावै मंदा जैसी नदरि तुम्हारी ||4|| आदि पुरख कर अलहु कहीऐ सेखा आई वारी । देवल देवतिआ करू लागा ऐसी कीरति चाली ||5|| कूजा बांग निवाज मुसला नील रूप बनवारी । घरि घरि मीआ समना जीआं बोली अवर तुमारी ||6|| जे तू मीर महीपति साहिबु कुदरति करण हमारी चारे कुंट सलामु करहिंगे घरि घरि सिफति तुम्हारी II7|| तीरथ सिम्रिति पुंन दान किछु लाहा मिलै दिहाड़ी। नानक नामु मिलै वडिआई मेका घड़ी सम्हाली ।।8।।

अर्थात, हे प्रभु! नौ खण्ड, सात द्वीप चौदह भुवन, तीन लोक और चार युगों का निर्माण कर तुमने इस सृष्टि को बसा दिया। तुमने चार दीपक चार युगों के हाथ में अपने-अपने क्रम पर पकड़ा दिए ||1|| हे कृपालु ! दुष्टदमन और मायापति प्रभु तुम्हारी शक्ति ऐसी है ||1|| रहाउ || प्रत्येक शरीर में तुम्हारी ज्योति व्यापक है, ये सब जीव तुम्हारा लश्कर हैं, इन जीवों पर धर्मराज राज्य करता है। तुमने एक बार में ही धरती रूपी देग बना दी, जिसमें से अक्षुण्ण भण्डार मिलता है। प्रत्येक जीव के पूर्वकृत कर्म तुम्हारा भण्डार बाट रहें हैं।12। जीवों का मन नारद दुविधा पैदा करता है, नास्तिक मन बार-बार पदार्थ मांगता रहता है। लोभ जीव के लिए अंधेरा कैदखाना है और इसके अपने कमाए पाप इसके पैर में लोहे की बेड़ी बने पड़े हैं।3। इस जीव का धन यह है कि इसे नित्य मुदगरों की मार पड़ती है और इसका कमाया पाप इसके सिर पर कोतवाली कर रहा है। लेकिन हे प्रभु जैसी प्रभु की कृपा कृपा हो, वैसा ही जीव बन जाता है। तुम्हें भला लगे तो भला बन जाता है, तुम्हें बुरा लगे तो बुरा बन जाता है ||4|| लेकिन अब मुसलमानी राज्य है जिसके पहले आदिपुरूष कहा जाता था। अब उसे ‘अल्लाह कहा जा रहा है। अब यह प्रथा है कि देवमंदिरों पर कर लगाया जा रहा है।।5।। अब लोटा, बांग, नमाज, मुसल्ला प्रधान है। प्रभु की बन्दगी करने वालों ने नीला बाना पहना हुआ है। अब तेरी बोली अलग हो गई है। हर एक घर में सब जीवों के मुंह में मियां  शब्द प्रधान हैं।16।। हे बादशाह तुम पृथ्वी के पति हो, मालिक हो। हम जीवों के क्या वश है? चारों दिशाओं के जीव तुम्हें प्रणाम करते हैं। हर एक घर में तुम्हारी ही गुणस्तुति हो रही है।17। तीर्थ-स्नान स्मृतियों के पाठ और दान-पुण्य आदि का यदि कोई लाभ है तो वह थोड़ी बहुत मजदूरी के तुल्य है। गुरुनानक का कथन है कि यदि कोई प्रभु का नाम एक घड़ी भर ही स्मरण करे तो उसे आदर-सत्कार मिलता है।

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