जब बिना गाउन पहने हाईकोर्ट में पेश हो गए वकील साहब, फिर क्या हुआ; जानिए यहां

प्रयागराज 

इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक वकील बिना गाउन के ही पेश हो गए। इस पर हाईकोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई और वकील की खिंचाई करते हुए  इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया। हालांकि कोर्ट ने इस वकील को यह कहते हुए माफ कर दिया कि वह एक ‘युवा’ वकील है। इसलिए मामले को  स्टेट बार काउंसिल को नहीं भेजा।

दरअसल, नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड की तरफ़ से युवा वकील संदीप (Advocate Sandeep) कोर्ट में पेश हुए थे वह अदालत के समक्ष वगैर गाउन पहने ही पेश हुए इस पर कोर्ट ने सख्‍त नाराजगी जाहिर की जस्टिस प्रिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने  कहा कि ‘अधिवक्ता संदीप बिना गाउन के कोर्ट में पेश हुए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि संदीप एक युवा वकील हैं, हम मामले को बार काउंसिल को भी भेज सकते हैं, लेकिन हम इस मामले को इस मंच पर नहीं भेज रहे हैं।’

आपको यहां यह भी बता दें पिछले महीने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील के पूरी पोशाक में न होने के कारण कैमरा ऑन करने से इनकार करने पर जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी। जस्टिस समित गोपाल की खंडपीठ ने इसे ‘आपत्तिजनक’ बताया था और मामले को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था।

वकील जब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई में शामिल हुआ तो उसका कैमरा बंद था। जब वकील को अपना कैमरा चालू करने का निर्देश दिया गया तो उसने कहा कि वह पोशाक में नहीं हैं, इसलिए वह कैमरे को ऑन नहीं कर सकता। इस पर कोर्ट ने इसे आपत्तिजनक बताते हुए राज्य के वकील की मौजूदगी दर्ज कर मामले को स्थगित कर दिया।

इसी तरह पिछले साल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील को फटकार लगाई थी, जो वीसी मोड के माध्यम से एक अन्य व्यक्ति के साथ पेश हुआ था। उक्त व्यक्ति स्क्रीन ” बिना शर्ट के” दिखाई दे रहा था।

पिछले साल ही, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील के कृत्य को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया था, जो अदालत द्वारा जमानत अर्जी में आदेश सुनाने के दौरान खुद को तैयार करने की कोशिश कर रहा था।

अदालत ने कहा, ‘ आवेदक की ओर से पेश वकील अदालत के कामकाज के तौर-तरीकों के अनुसार उचित वर्दी में नहीं हैं। जब आदेश दिया जा रहा है तो वह तैयार होने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्वीकार्य नहीं है।’

जून, 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील की खिंचाई की थी, जो कार में बैठे-बैठे ही केस पर बहस करने की कोशिश कर रहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को अदालतों को संबोधित करते हुए सुनवाई के दौरान वकीलों के लिए ‘क्या करें और क्या न करें’ के लिए नियमों का एक सेट तैयार करने का भी निर्देश दिया था।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ का यह आदेश हाईकोर्ट के बार संघों के पदाधिकारियों को अपने सदस्यों को सलाह देने के लिए कहा गया कि वे वर्चुअल मोड के माध्यम से इस न्यायालय के समक्ष पेश होने के दौरान कोई आकस्मिक दृष्टिकोण न अपनाएं, जिससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

न्यायालय ने उस समय अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा था,“वकीलों को अपने दिमाग में रखना चाहिए कि वे अदालतों के समक्ष एक गंभीर कार्यवाही में भाग ले रहे हैं। वे अपने ड्राइंग रूम में नहीं बैठे हैं और न ही इत्मीनान से समय बिता रहे हैं।”

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