होली
डॉ. विनीता राठौड़
होलिका में दहन कर अपना अहंकार
मानवता पर करें हम यह उपकार
ऊंच- नीच का भेद मिटा कर
प्रेम से करें सबको स्वीकार
फागुनी बसंत लाई प्रकृति का अनुपम उपहार
खिल उठे सेमल,अमलतास व पलाश
इनके फूलों की सुर्ख ,पीताभ व रक्तिम आभा
करती संचारित जीवन में प्रेम-प्रीत व उल्लास
सीख अनूठी ये सिखलाते
पर्ण विहीन हो कर भी देखो
पुष्पित हो कर ये इठलाते
विषमताओं में भी सहज जीवन का पाठ पढ़ाते
“बुरा न मानो होली है “की लेकरआड़
ना तोड़ें मर्यादा की कोई भी दीवार
शुचिता का रखें पूरा ध्यान
मिलकर करें सब ये करार
लगा कर ज्ञान का उबटन
धो डालें मन का मलाल
मुदित मन से करें
सुन्दर रंगों की बौछार
भूला कर आपसी वैमनस्य
प्रेम-प्रीत की रीत निभाएं
गा कर फाग बजा कर चंग
रंगोत्सव की खुशियाँ मनाएं
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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