बेंगलुरु
देश में दस लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश नियुक्त करने की मांग की गई है और कहा गया कि देश में इस समय दस लाख की आबादी पर सिर्फ 15 न्यायाधीश हैं जिससे लोगों को समय पर न्याय सुलभ नहीं हो पा रहा है।
10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति की यह मांग राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की बेंगलुरु में हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में उठाई गई। बैठक में भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर भी गहरी चिंता जताई गई। बैठक में मांग की गई कि प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून शीघ्र बनाया जाए। ताकि लोगों को सस्ता, सुलभ और शीघ्र न्याय मिल सके।
संगठन के राष्ट्रीय सह- संगठन मंत्री एडवोकेट गिरिराज गुप्ता ने बताया किभारत में मुकदमों के फैसले होने में 10 से 20 वर्ष लग रहे हैं। इसका प्रमुख कारण न्यायाधीशों की कमी है। जबकि विश्व के अनेक देशों में न्यायालयों में मुकदमों का निर्णय एक वर्ष के अंदर होता है।
भारत में दस लाख की आबादी पर सिर्फ 15 न्यायाधीश
बैठक में बताया गया कि अमेरिका में 10 लाख की आबादी पर 110 , इंग्लैंड में 60 न्यायाधीश हैं, पर भारत में केवल 15 न्यायाधीश हैं। बैठक में बताया गया कि 1987 में न्यायिक आयोग ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का नियम बने। पर सरकार ने आज तक उस सुझाव को लागू नहीं किया है।
बैठक में मांग की गई कि लोकतंत्र और सुशासन की सफलता के लिए शीघ और सुलभ न्याय अति आवश्यक है। इसलिए केंद्र सरकार को अहम कदम उठाते हुए 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति का कानून बनाना चाहिए।
संगठन के संस्थापक गोविंदाचार्य, राष्ट्रीय संयोजक बसवराज पाटिल, कार्यकारी संयोजक, सुरेंद्र सिंह बिष्ट के नेतृत्व में हुई इस बैठक में संगठन के दस साल के लक्ष्य पर चर्चा हुई। बैठक में जलवायु परिवर्तन, जल संचय, गोपालन, एमएमपी कानून, न्याय व्यवस्था, NRC, चिकित्सा व्यवस्था सहित अंतरराष्ट्रीय विषयों पर मंथन किया गया।
बैठक में संगठन का दस साल का मिशन तय करते हुए व्यवस्था में बदलाव का संकल्प लिया गया। व्यवस्था परिवर्तन के लिए बौद्धिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक गतिविधियों को संचालित करने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की। बैठक में देश के कई अहम मुद्दे उठाते हुए सरकार का उस ओर ध्यान आकृष्ट किया गया।
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