आस्था
मुरारी शर्मा एडवोकेट, वैर (भरतपुर)
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सभी घटनाओं का भलीभांति जिक्र किया गया है। लेकिन अन्य वेद और ग्रंथों में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिसका वर्णन बहुत कम जगह देखने को मिलता है। कथा के अनुसार, राजा दशरथ की तीन रानियां थीं, पहली कौशल्या, दूसरी सुमित्रा और तीसरी कैकेयी। रानी कौशल्या के पुत्र राम थे, सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेयी के भरत थे। लेकिन कौशल्या ने एक पुत्री को भी जन्म दिया था, जो इन सब भाइयों में सबसे बड़ी थी। कथा के अनुसार वह कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और अत्यधिक सुंदर कन्या थीं। उनका नाम शांता रखा गया।
क्यों शांता के माता-पिता नहीं बने दशरथ और कौशल्या
देवी शांता को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं प्रचलित है। लेकिन एक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि, एक बार अंगदेश के राजा रोमपद अपनी पत्नी रानी वर्षिणी के साथअयोध्या आए हुए थे। राजा रोमपद और वर्षिणी को कोई संतान नहीं थी। बातचीत के दौरान जब राजा दशरथ को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा, आप मेरी पुत्री शांता को संतान के रूप गोद ले लीजिए। राजा दशरथ की यह बात सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हो गए। उन्होंने शांता को गोद लेकर बहुत ही स्नेहपूर्वक उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सारे कर्तव्य निभाए।
एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री शांता से कुछ बात कर रहे थे। तभी उनके द्वार पर एक ब्राह्मण आए। ब्राह्मण ने राजा रोमपद से प्रार्थना करते हुए कहा कि, वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में राज दरबार की ओर से कुछ मदद करने की कृपा करें। लेकिन राजा शांता के साथ बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की बात नहीं सुनी। ऐसे में द्वार पर आए हुए जरूरतमंद ब्राह्मण की याचना न सुनने पर उसे बहुत दुख हुआ। वह ब्राह्मण राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चला गया। वह ब्राह्मण इंद्रदेव का भक्त था। इंद्रदेव अपने भक्त का दुख देख राजा रोमपद पर क्रोधित हो गए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की। इससे खेतों में खड़ी फसलें मुरझा गई।
श्रृंग ऋषि से हुआ देवी शांता का विवाह
इस संकट की समस्या के लिए राजा रोमपद श्रृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा। तब ऋषि ने बताया कि, उन्हें इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कराना चाहिए. इसके बाद राजा रोमपद ने श्रृंग ऋषि से यज्ञ कराया और इसके बाद राज्य के खेत-खलिहान पानी से भर गए। राजा रोमपद ने श्रृंग ऋषि के साथ अपनी पुत्री शांता का विवाह कराया और इसके बाद दोनों सुखपूर्वक दांपत्य जीवन बिताने लगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंग ऋषि ने ही राजा दशरथ को वंश चलाने के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का आदेश दिया था। इस यज्ञ के बाद राम, भरत और जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। कहा जाता है कि अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में आज भी श्रृंग ऋषि आश्रम है और यहां उनकी और देवी शांता की समाधि है। हिमाचल में कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर दूर देवी शांता एक प्राचीन मंदिर है, जहां नियमित रूप से उनकी पूजा होती है।
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