जीवन और प्रेम…

जीवन 

डॉ. अलका अग्रवाल 


प्रेम नीर से ही बढ़ता है,
जीवन का यह पौधा।
जीवन के अपने अनुभव से,
हमने सूत्र ये खोजा।

प्रेम मिला ना, मां का जिनको
वे तो सचमुच हुए अनाथ।
पिता बने गर ग्रास काल का,
उनके सर पर किसका हाथ?

बहिन- भाई के प्यार की सरिता,
गंगा जैसी पावन है।
बहिन- बहिन और भाई- भाई का,
प्यार बड़ा मनभावन है।

हुए युवा तो प्रेम भी अपने,
नए रूप में आता है।
हो विवाह तो पति- पत्नी में,
प्रेम का सच्चा नाता है।

जल बिन जैसे सूखे पौधा,
प्रेम बिना मानव का हाल।
प्रेम बिना जीवन ना जीवन,
जीवन बन जाता जंजाल।

(लेखिका सेवानिवृत कॉलेज प्राचार्य हैं)

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