जिंदगी
रचना शर्मा एडवोकेट, एक्सपर्ट- महिला उत्पीड़न मामले
गरमी
जब
करने लगती है
भारी जुल्म
तब हवा
मुट्ठी तान
उठाती है
बाजुओं को
मानो कह रही है
इंकलाब …
जिसे सुन
चली आती है
धूल की सेना
आंधी बनकर
कुछ उजड़ता है
कुछ बिखरता है
और फिर बारिश की फुहार से
बहुत कुछ संवरता है
प्रकृति हो या जिन्दगी
हम सबके साथ
खेल तो आखिर
यही चलता है।
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