जनम जनम की प्रीत निभाएं

श्रावणी तीज

डॉ. विनीता राठौड़


आया श्रावणी तीज का त्यौहार
मन में छाया हर्षोल्लास अपार
सिंजारे के रूप में प्रेषित
मां के भावों का दर्पण है तीज
रिमझिम सावन में भीगे तन-बदन
झंकारित हो मन में मधुर जल-तरंग

जलधार संग बेलपत्र शिव को चढ़ाएं
प्रीतम को लड्डू और घेवर खिलाएं
अमर प्रेम का दीप जलाएं
मनमीत से प्रीत सदा ही पाएं
सोलह श्रृंगार कर के इठलाएं
पहन लहरिया पिया को रिझाएं

हाथों में रचनी मेहन्दी रचाएं
हरी चूड़ियां खन-खन खनकाएं
सखियों संग प्रेमगीत गुनगुनाएं
झूला झूलें और हर्षाएं
जनम जनम की प्रीत निभाएं
सातों जनम उन्हीं को पाएं

प्रेम प्रतीक तीज का यही संदेश
बना रहे माधुर्य, न हो किसी से द्वेष
शिव पार्वती सा हो सबका दाम्पत्य
अखण्ड रहे सबका सौभाग्य व तारतम्य।

(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)

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