जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के प्रस्ताव से खलबली, बदल सकते हैं राजनीतिक समीकरण, जम्मू में 6 और कश्मीर घाटी में बढ़ जाएगी एक सीट

श्रीनगर 

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग  के प्रस्ताव की जानकारी सामने निकल कर आ गई है। यदि यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। इसका मतलब ये है कि अब जम्मू-कश्मीर में किसी एक परिवार का आधिपत्य ख़त्म होने जा रहा है। परिसीमन आयोग की  सोमवार को हुई बैठक में 7 नई विधानसभा सीटों का प्रस्ताव रखा गयाआपको बता दें कि परिसीमन आयोग को मार्च 2022 से पहले अपना काम पूरा करना है। उम्मीद की जा रही है कि परिसीमन आयोग जनवरी में अपने अंतिम रिपोर्ट दे देगा।

सोमवार को परिसीमन आयोग की बैठक के बाद जानकारी सामने आई कि परिसीमन पैनल ने जम्मू में 6 और कश्मीर घाटी में 1 और विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इससे जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हो जाएंगी। ST के लिए 9 सीटें और SC के लिए 7 सीटें रिजर्व रखी जाएंगी। वहीं, POK के लिए 24 सीटें रिजर्व होंगी। नई हवा के सूत्रों के अनुसार परिसीमन आयोग ने जम्मू कश्मीर के सभी पांचों सांसदों को उनके सुझाव और राय 31 दिसंबर तक देने के लिए कहा हैसूत्रों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग ने विधानसभा के परिसीमन निर्धारण की प्रक्रिया को अब जल्द पूरा करने का काम शुरू कर दिया है

पहले थी 87 सीटें, अब हो जाएंगी 90
पिछले चुनाव तक जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं लद्दाख के अलग केंद्र शासित राज्य होने के बाद सूबे में कुल 83 सीटें रह गईं अब नए परिसीमन निर्धारण के बाद प्रदेश में ये बढ़ कर 90 विधानसभा सीट हो जाएंगी उम्मीद की जा रही है कि फाइनली नोटिफिकेशन के बाद चुनाव करवाया जाएगा

इसलिए जरूरत पड़ी परिसीमन की
जम्मू कश्मीर विधानसभा में 5 अगस्त 2019 से पहले (अनुच्छेद 370 और 35A हटने से पहले) की विधानसभा में कुल 87 सीटें थी कश्मीर घाटी की 46 और जम्मू की 37 के अलावा लद्दाख की 4 सीटें शामिल थी लेकिन 370 और 35A हटने और केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने के बाद के बाद लद्दाख की 4 सीटें समाप्त कर दी गई अब जम्मू कश्मीर में 83 विधानसभा सीटें हैं जिन्हेंं जनसंख्या और 2011 के जनगणना के अनुसार बढ़ाकर 90 किया जाना प्रस्तावित है परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद जम्मू कश्मीर में कुल 114 सीटें होंगी और इनमें 24 पाक अधिकृत कश्मीर (POK) की सीटें भी शामिल होंगी

बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का शोषण करने वालों में छटपटाहट
इस बीच परिसीमन आयोग के ताजा प्रस्ताव के बाद जम्मू-कश्मीर के भावी राजनीतिक समीकरणों का संकेत मिलना भी शुरू हो गए हैं। सिर्फ बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भावनाओं के शोषण पर सियासी दुकान चलाने वाले महबूबा मुफ़्ती और फारूख अब्दुल्ला के सियासी दलों में इसे लेकर छटपटाहट देखी जा सकती है। वहीं 70 साल से राजनीतिक रूप से खुद को उपेक्षित महसूस करने वाले कश्मीरी पंडित, सिख, गुलाम कश्मीर के नागरिक, जनजातीय समूह सभी इसके परिणाम को लेकर अपने कयास लगा रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि शायद अब उनका उद्धार हो जाए।

2011 की जनगणना को बनाया आधार
परिसीमन आयोग ने रिपोर्ट 2011 की जनगणना आधार पर तैयार की है। जम्मू कश्मीर में मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों में कई इलाके आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से बड़े हैं,जबकि कई बहुत छोटे। कई विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र दो जिलों में फैले हैं। सभी विसंगतियों को मौजूदा आयोग ने दूर करने की कोशिश की है। जनजातीय समूहों को उनकी आबादी के लिहाज से 10 सीटों पर आरक्षण लाभ मिल सकता है। सीमावर्ती इलाकों में छितराई आबादी के लिए नया निर्वाचन क्षेत्र भी बनाया जा सकता है। गुलाम कश्मीर के नागरिक चाहते हैं कि गुलाम कश्मीर के कोटे की 24 में से कुछ सीटों को अनारक्षित कर उन पर उनके समुदाय के प्रतिनिधियों को चुना जाए। अलबत्ता, परिसीमन आयेाग ने स्पष्ट कर रखा है कि गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित सीटें उसके कार्याधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

दस महीने बाद आयोग की दूसरी बैठक
आज जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) की बैठक में केंद्रीय मंत्री डॉ.जितेंद्र सिंह (Union Minister Jitendra Singh), नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah ) के साथ पार्टी नेता मोहम्मद अकबर लोन (Mohammad Akbar Lone) तथा हसनैन मसूदी और बीजेपी के जुगल किशोर शर्मा (Jugal Kishore Sharma) ने हिस्सा लिया। दस महीने बाद यह आयोग की दूसरी बैठक थी। इसमें पहली बैठक के विपरीत सभी एसोसिएट सदस्य भाग ले रहे हैं।

फरवरी में पहली बैठक में नेशनल कांफ्रेंस के तीनों सांसद नदारद रहे थे। अधिकारियों ने बताया कि बैठक में आयोग सभी एसोसिएट सदस्यों को जम्मू कश्मीर में परिसीमन के प्रस्तावित प्रारूप से अवगत कराया गया। अब उनके सुझाव लिए जाएंगे। उसके बाद संबंधित प्रारूप को सार्वजनिक किया जाएगा। आपको यहां ये भी बता दें कि एसोसिएट सदस्यों के पास कोई मतदान या हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है। उनके विचारों को बोर्ड पर लिया जाता है। इसमें असहमतिपूर्ण राय भी शामिल है, जिन्हें परिसीमन की अधिसूचना में रिकार्ड में रखा जाता है। उनके सुझावों और आपत्तियों पर अमल के लिए आयोग बाध्य नहीं है।

‘चुनाव पर फैसला चुनाव आयोग लेगा’
बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री और जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग (Jammu Kashmir Delimitation Commission) के सदस्य डॉ.जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘बहुत अच्छी मीटिंग हुई सबने कमीशन को कोऑपरेट किया कमीशन ने बहुत अच्छे से डॉक्यूमेंटेशन किया है चुनाव कब होगा इस पर चुनाव आयोग (Election Commission) ही फैसला लेगा सरकार चुनाव आयोग के काम मे दखल नही देगी

अंतिम बार परिसीमन प्रक्रिया 1995 में
जम्मू कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को लगभग 26 साल बाद शुरू किया गया है। अंतिम बार परिसीमन प्रक्रिया को 1995 में अपनाया था। यह परिसीमन जम्मू कश्मीर संविधान और जम्मू कश्मीर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत जस्टिस केके गुप्ता की अध्यक्षता में बनाए आयोग की सिफारिशों के अनुरूप हुआ था। पांच अगस्त 2019 से पहले के जम्मू कश्मीर राज्य की विधानसभा में 87 निर्वाचित, दो नामांकित सदस्यों के अलावा 24 सीटें गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित रहती थी। जम्मू कश्मीर में सिर्फ अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित थी। कश्मीरी पंडितों, गुलाम कश्मीर के विस्थापितों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं थी।

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