नई दिल्ली
एक वकील को तीसरे दर्जे का बताना एक पत्रकार को भारी पड़ गया है और इस गलती के लिए उसे एक महीने जेल की सजा भुगतनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि का दोषी पाए गए पत्रकार की याचिका को खारिज कर दिया है। उसे एक महीने की कैद की सजा सुनाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक वकील के खिलाफ मानहानि वाले लेख प्रकाशित करने के लिए 2015 में दोषी ठहराए गए पत्रकार को राहत देने से इनकार करते हुए पत्रकार के विवादित लेखों में उसके द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा के खिलाफ टिप्पणी की।
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्य कांत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई और कहा, आपने किसी को ‘तीसरे दर्जे का वकील’ कहा। आप इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हो और दावा करते हो कि तुम पत्रकार हो।’
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) की अगुआई वाली बेंच में शामिल जस्टिस हिमा कोहली ने कहा, ‘अपने लेख की भाषा देखो।’ सजा को ‘उदार’ बताते हुए सीजेआई ने कहा, ‘यह पीत पत्रकारिता है। यह उदारता है कि केवल एक महीने की कैद दी गई है।’
न्यायलय की कठोर टिप्पणियां
‘वे बहुत उदार थे जिन्होंने केवल एक महीने की सजा दी। वह इससे अधिक का हकदार है।’
–सीजेआई रमना
‘आप इस तरह की भाषा का उपयोग करते हैं और दावा करते हैं कि आप पत्रकार हैं?’
– न्यायमूर्ति सूर्यकांत
‘अपनी भाषा देखो।’
– जस्टिस कोहली
‘यह पूरी तरह से पीत पत्रकारिता है।’
–न्यायमूर्ति कांत
वर्तमान मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 501 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक निजी शिकायत की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि आरोपी जो कन्नड़ साप्ताहिक समाचार पत्र ‘तुंगा वर्थे’ के संपादक, मुद्रक और प्रकाशक हैं, उन्होंने अपने समाचार पत्र में शिकायतकर्ता के खिलाफ निराधार आरोप लगाते हुए उसे बदनाम करने और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से कई समाचार लेख प्रकाशित किए थे। हाईकोर्ट ने नोट किया था कि याचिकाकर्ता ने बार-बार ऐसे आलेख छापे और शिकायतकर्ता के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया जो एक वकील और नोटरी है।
आदेश में यह कहा गया
रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से यह भी पता चलता है कि आरोपी को पहले भी इसी तरह के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था, लेकिन उसने ऐसे लेख प्रकाशित करना जारी रखा जो मानहानिकारक हैं।
हाईकोर्ट ने कहा था कि जब प्रकाशित लेख में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अत्यधिक आपत्तिजनक है और स्पष्ट रूप से किसी व्यक्ति के चरित्र हनन के बराबर है। आरोपी ने आपत्तिजनक भाषा इस्तेमाल की और वह केवल यह दलील देकर बच नहीं सकता कि उक्त प्रकाशन नेकनीयती से किया गया है।
खंडपीठ ने यह भी देखा था कि आईपीसी की धारा 499 के तहत अपवादों का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से आरोपी को यह साबित करना आवश्यक है कि प्रकाशन में आरोप जनता की भलाई और बिना किसी दुर्भावना के लगाए गए थे और उसका इरादा वकील को बदनाम करने का नहीं था।
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