सोनिया मौर्य, बल्लभगढ़
जिंदादिल मेट्रो
जिंदा है
भागते हुए
उनकी मंजिल होगी…
और कुछ लोग
जो शायद अभी तप कर रहे हैं वो सफर,
जिसका एक मुकाम शायद कुछ खो गया है
भारी किये चल रहे हैं
पर इस सफर में
शायद उनका वो उत्साह
कुछ है आज आँखें को..
कुछ है जो खुश ना होकर
बस भाग रहे हैं…
क्या कभी ना खतम होने वाले….
क्या सफर में
यहां इंसान कम है
पर कुछ ज्यादा है…
पर भाग रही सबकी उदासी के लिए..
ये जिंदादिल मेट्रो
कुछ वो जो बैठे हैं..
ऐनक की खिड़की से ताकते हुए..
कुछ वो जो बेसुध हैं
कुछ वो जो अल्हड़ जवान से..
जो सफर मुझे भी
या कुछ वो भी
अख्तियार कर रहे हैं जिंदगी…
सुनकर कोई गीत…
कोई शा..
कोई कहानी…
कोई राज…
जिंदा है वो कुछ लोग अब भी
या सपाद वही है…
जो भर देते हैं..
ये उत्साह और जिंदादिली
और चलती रहती हैं
ये जिंदादिल मेट्रो…
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