शिक्षा की स्थिति और निवेश को लेकर केंद्रीय वित्त सचिव के बयान की ABRSM ने की निंदा

जयपुर 

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने एक अंग्रेजी समाचार पत्र में शिक्षा की स्थिति और शिक्षा में निवेश के बारे में प्रकाशित केंद्रीय वित्त सचिव के पूर्णतया गैर जिम्मेदाराना, अनुचित एवं संवेदनहीन मानसिकता के परिचायक बयान की कठोर निंदा करते हुए सरकार से आवश्यक कार्रवाई की मांग की है।

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महासंघ के अध्यक्ष प्रो. जेपी सिंघल ने बताया कि केंद्रीय वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने शिक्षा पर खर्च, शिक्षकों और शिक्षा संस्थानों की संख्या को लेकर जो बयान दिए हैं वे घोर आपत्तिजनक, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत एवं जमीनी परिस्थितियों के परे हैं।

जेपी सिंहल ने कहा कि केंद्रीय वित्त सचिव सोमनाथन ने केंद्र सरकार की नीतियों तथा शिक्षा के संबंध में संवैधानिक समितियों के प्रतिवेदनों के विपरीत जो सार्वजनिक बयान दिए हैं उससे नौकरशाही की निरंकुशता, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के उल्लंघन और शिक्षा के क्षेत्र में उनकी समझ की कमी का दर्शन हुआ है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ से जुड़े बारह लाख शिक्षकों ने उनके इस बयान की भर्त्सना करते हुए इस संबंध में समुचित स्पष्टीकरण एवं कार्रवाई की मांग सरकार से की है।

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महासंघ ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को ज्ञापन प्रेषित करके बताया है कि 1968 से लेकर 2020 तक की सभी राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां शिक्षा पर सार्वजनिक निवेश को जीडीपी के 6% तक बढ़ाने की सिफारिश करती हैं  किंतु दुर्भाग्य से शिक्षा पर सार्वजनिक निवेश बहुत हद तक केंद्र और राज्यों के कुल सरकारी व्यय के 10% या सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक ही स्थिर रहा है।

महासंघ ने शिक्षा पर संसद की विभिन्न स्टैंडिंग कमेटियों ने भी समय-समय पर शिक्षा में निवेश और उसकी स्थिति पर चिंता जताई है। मानव संसाधन विकास / शिक्षा पर स्टैंडिंग कमिटियों (2018, 2020, 2021) ने बार-बार उल्लेखित किया है कि शिक्षा विभाग को उसके प्रस्तावों से बहुत कम धनराशि आवंटित की जाती है। शिक्षा पर स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी एवम सफल कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए समुचित बजटीय आवंटन करने पर जोर दिया है। इसके बावजूद केंद्रीय वित्त सचिव ने शिक्षा में और निवेश नहीं करने की बात की है‌।

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महासंघ के महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा ने बताया कि यूनेस्को की रिपोर्ट ‘2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: नो टीचर, नो क्लास’, में कहा गया है कि भारत में लगभग 120,000 एकल-शिक्षक स्कूल हैं और इनमें से 89% एकल-शिक्षक स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। देश के स्कूलों में शिक्षकों के 11.16 लाख पद खाली हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रिक्त पदो की संख्या 69% तक है। शिक्षा पर  स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने उच्च माध्यमिक स्तर पर जीईआर में गिरावट पर चिंता व्यक्त की है। एनईपी के अनुसार 2030 तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर 100% जीईआर हासिल करने के लिए तीन करोड़ से अधिक स्कूली बच्चों को स्कूल में नामांकित करने की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा पर  स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि एनईपी 2020 के उद्देश्य के अनुसार 2035 तक उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 50% तक बढ़ाने  के लिए बडी संख्या में शिक्षकों की आवश्यकता होगी। इन सब तथ्यों के होते हुए भी केंद्रीय वित्त सचिव ने शिक्षा संस्थानों और शिक्षकों की संख्या पर्याप्त बताई है।

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