अब बरसे सुख की बरखा
डॉ. शिखा अग्रवाल
नए साल के नए पृष्ठ पर,
लिख दें कुछ हंसती खुशियां,
बहुत घुमड़ली दुख की बदली,
अब बरसे सुख की बरखा।
जो खोया वह यादों में है,
बस विश्वास नहीं खोना,
जीना और जगाना सब में,
दिल में मानवता होना।
नए कायदे, नए वायदे,
नया बने जीवन मंत्रा,
नए मित्र हों, मित्र पुराने,
साथ लिखें स्मृति यात्रा।
गए साल से सीखा सबने,
मिलजुल कर सब से रहना,
छोटे से इस जीवन पथ में,
कैसा बैर, किससे लड़ना।
मानव से आगे भी जुङ लें,
पेड़, प्रकृति, जीवों से,
पृथ्वी की धड़कन हैं ये सब,
स्वीकारें अब ये दिल से।
अपने भीतर झांके फिर से,
कितना स्वार्थ, कितना परहित है,
नए वर्ष में तम को कम कर,
खुशियों का प्रकाश कर दें।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ में सह आचार्य हैं)
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