कारगिल का शेरशाह: कैप्टेन विक्रम बत्रा

गणतंत्र दिवस 

[DISPLAY_ULTIMATE_SOCIAL_ICONS]

तन्मय गुप्ता 

सन 1999, जुलाई 26 भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का एक बड़ा युद्ध। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कारजिल में एक निर्णायक युद्ध जीता। इस लड़ाई में कई बहादुर युवा सैनिकों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया अपने देश की रक्षा करने के लिए।

इन सभी बलिदानियों में एक ऐसा सैनिक भी था जो कारगिल में पूरे जज्बे से लड़ने वाले हर एक युवा सैनिक का चेहरा बन गया। ये कहानी है परमवीर चक्र कैप्टेन विक्रम बत्रा की। वो अविश्वसनीय साहसी सैनिक जिसने कारगिल युद्ध में वो कर दिखाया कि आने वाली पीढ़ी याद रखेगी।

जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तब विक्रम ने बेलगांव में अपना कमाण्डो कोर्स पूरा किया था और होली की छुट्टिरां मनाने अपने घर पालमपुर आए थे। उस वक्त उनके दोस्त ने चिंता ज़ाहिर की-‘युद्ध शुरू हो चुका है। क्या पता तुमको कब बुला लिया जाए। अपना ध्यान रखना।’ इस पर जानते हैं कि विक्रम बत्रा क्या बोले? वो बोले-‘चिंता मत करो या तो मैं जीत के बाद तिरंगा लहरा कर आऊंगा या फिर उसी तिरंगै में लिपट कर आऊंगा, लेकिन आऊंगा ज़रूर।’ और इस तरह उन्होंने अपना वादा निभाया।


‘ये दिल मांगे मोर’ – कैप्टेन विक्रम बत्रा 


कारगिल के दौरान विक्रम का सबसे कठिन ऑपरेशन था 17000 फीट ऊंचे प्वाइंट पर कब्जा। बर्फीली ढलान और धुंआ ने हालात और खराब कर दिए थे। मगर विक्रम ने अपने दोस्तों और साथी ऑफिसर अनुज नय्यर के साथ मिलकर तीव्रता से हमला किया। दुश्मन के बंकरों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ते गए और दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

मिशन लगभग खत्म हो गया था। तभी विक्रम अपने एक जूनियर को बचाने अपने बंकर से बाहर जाने लगे। भयानक आग के बीच भी उन्होंने दुश्मन की पोस्ट पर बम फैंका। अपने साथी के पास पहुंचने पर वो उसे अपने बंकरों की तरफ खींच ही रहे थे कि तभी एक गोली उनके सीने में लगी। अपने मिशन को पूरा करने के बाद विक्रम शहीद हो गए। लेकिन आज भी उनका नाम देश भर में गूंजता है।


कारगिल के दौरान अपने अविश्वसनीय साहस के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा मरणोपरांत आर्म्ड फोर्सेज का हाईएस्ट गल्लांट्री अवॉर्ड परमवीर चक्र से सम्मानित किए गए।





 

प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल करें  : ok@naihawa.com

 


SHARE THIS TOPIC WITH YOUR FREINDS