नई दिल्ली
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद अब NCERT की किताबों में भी बदलाव करने की मांग जोर पकड़ रही है। इसे लेकर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (ABRSM) का एक प्रतिनिधि मंडल एनसीईआरटी की पुस्तकों में सुधार हेतु गठित सुझाव समिति के अध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे से मिला और कहा कि वर्तमान में बच्चों को विकृत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि बच्चों को ऐसी पाठ्य सामग्री पढ़ाई जानी चाहिए जिससे उनमें भारतीय गौरव का बोध हो और इसके साथ-साथ जीवन के प्रति उसकी एकीकृत दृष्टि विकसित हो सके।
संगठन के अध्यक्ष प्रोफेसर जेपी सिंघल ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल ने समिति के अध्यक्ष से भेंटकर एनसीईआरटी की पुस्तकों के कंटेंट और डिजाइन में सुधार को लेकर अनेक सुझाव दिए हैं। महासंघ का मत है कि पुस्तक लेखन में प्रमाणिक तथ्य मार्गदर्शक हों ना कि कोई विचारधारा। उन्होंने कहा कि अभी तक पुस्तकों में वामपंथी व कांग्रेसी लेखकों द्वारा तथ्यों का विरूपण किया गया एवं भारतीय नायकों पर कटाक्ष किए गए हैं। उनके योगदान को सीमित एवं चयनित रूप से दर्शाया गया है। अब समय आ गया है कि इसमें बदलाव हो।
भारत के गौरवशाली इतिहास की गई अनदेखी
ABRSM ने एनसीईआरटी की सुझाव समिति के अध्यक्ष सहस्त्रबुद्धे को बताया कि औपनिवेशिक युग के इन पूर्वाग्रहों को वर्तमान पुस्तकों में स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। देश के गौरवशाली अतीत की अनदेखी की गई है। भारतीय इतिहास की गलत व्याख्या कर इसका हिंदू मुस्लिम और ब्रिटिश रूप में विभाजन किया गया है। इतिहास को इस तरह से विभाजित करना भी डिवाइड एंड रूल का एक तरीका रहा है। हमारा विद्यार्थी यह समझते हुए बड़ा होता है कि ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो कुछ भी अच्छा हुआ है वह सभी पश्चिम की देन है जबकि ऐसा नहीं है।
इतिहास की मनमाने ढंग से की गई व्याख्या
संगठन ने सहस्त्रबुद्धे को बताया कि भारत की सभ्यता एवं संस्कृति बहुत समृद्ध एवं विशाल है। जबकि बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में प्राचीन हिंदू ग्रंथों को महिलाओं की स्वतंत्रता के घोर विरोधी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है जबकि यह पूर्ण रूप से गलत है। यही नहीं संस्कृत को आक्रमणकारियों की भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। यह इतिहास की मनमाने ढंग से व्याख्या करने का प्रयत्न है। इसलि ऐसे विरूपणों, अर्धसत्यों, सुविधानुसार चयनित तथ्यों, अस्पष्टताओं, अतिसरलीकरणों, पक्षपातों, पूर्वाग्रहों, सामान्यीकरणों, तुष्टिकरणों, एक विशेष राजनीतिक विचारधारा को पोषण करने वाले तथ्यों के प्रवर्धनों और अप्रमाणिक जानकारियों से मुक्त भारतीय दृष्टि से प्रमाणिक लेखन की आवश्यकता है। महासंघ का मत है कि पुस्तकों में सुधार करते हुए विद्यालय पाठ्यक्रम को इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति विद्यार्थी के भीतर भारतीय होने के नाते गर्व की भावना पैदा हो सके।
सांस्कृतिक विरासत को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए
संगठन ने मांग की कि राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए देश के विभिन्न जातीय समूहों और सांस्कृतिक विरासत परंपराओं को सही परिप्रेक्ष्य में पुस्तकों में समाहित किया जाना चाहिए। महासंघ का मानना है कि शिक्षा तभी प्रासंगिक और सार्थक हो सकती है जबकि इसे विद्यार्थियों के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों से जोड़ा जाए। इस हेतु भारत के सभी क्षेत्रों के महापुरुषों के विचारों को पुस्तकों में संतुलित रूप से जोड़ा जाना चाहिए। योग एवं चिकित्सा पद्धतियों जिसे आज दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है का भी पाठ्यक्रम में समुचित रूप से समावेश होना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणाली को स्थानीय समाज और समूह जो इस ज्ञान के पारंपरिक भंडार हैं, के माध्यम से सुरक्षित करने के लिए शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव की बात कही है। पाठ्य पुस्तकों में ऐसे स्थानीय ज्ञान से संबंधित प्रयोगों को समुचित स्थान दिया जाना चाहिए एवं महत्वपूर्ण स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों को बताने वाले प्रमाणों एवं विश्लेषणों को भी विद्यार्थियों को बताया जाए ताकि भारतीय गौरव बोध के साथ-साथ जीवन के प्रति उसकी एकीकृत दृष्टि विकसित हो सके।
प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल करें : ok@naihawa.com
SHARE THIS TOPIC WITH YOUR FREINDS