जमुना कौ सच
डॉ. अंजीव अंजुम
बहौ
ओ! मलिन जल
जमुना बहौ
जे तन वृंदावन अरु
मन मथुरा के
सूने मंदिरन को सुचि बिसरौ
जल है
पावनता के ब्रिच्छ कुचलिकैं
पाखण्डन की डारन
पे फलतौ फल है
छलिया के छल
कूँ छलती
जे झूँठ उच्छृंकल है
जा मिथ्या ते नित
आचमन करते
रहौ
ओ!मलिन जल जमुना
बहौ
शायद टूटी बैसाखी पै चलिकैं
फिर कोहू जा
तट किनारे गीत गावेगौ
जा मिथ्या ते नित
आचमन करते
रहौ
ओ!मलिन जल जमुना
बहौ
शायद टूटी बैसाखी पै चलिकैं
फिर कोहू जा
तट किनारे गीत गावेगौ
शायद जिन गंदे तटन पे
खड़ी हेयकैं
कोहू मरी अंधी आस्था के
कबहूं दीप जरावेगौ
जा जल की मलिनता पै
पावनता कौ चोला पहन
कोहू आडंबर
चुनरी महोत्सव करावेगौ
जितनीहू शेष ध्वनि है
जिन टूटी लहरन्नकी बिन्तै
कहौ
ओ! मलिन जल जमुना
बहौ
शायद कल
किनारे जरौ दीपक
जिन निष्प्राणन मंदिरन में
विराजे ठाकुर के चक्षु खोल दे
हर गली ते मल उठायकैं
उफनती बिन नालिन ते
काहू जीवन की सच्चाई को
प्रश्न बोल दे
शायद कल
गूंगी प्रार्थना कूँ संग लैकैं
कोटि-कोटि कंठन की
कोहू शक्ति तोल दे
दर्द जित्तौ
फूट रह्यौ है
समय संग बाकूँ
गहो
ओ! मलिन जमुना जल
बहौ
(लेखक प्रधानाध्यापक एवं राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी जयपुर की पत्रिका ब्रजशतदल के सहसंपादक हैं )
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