नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए फैसला दिया है कि अब कोई भी लॉ ग्रेजुएट सीधे जज (judge) नहीं बन सकता। अब सुप्रीम कोर्ट ने जज की कुर्सी तक पहुंचने के लिए कम से कम 3 साल की कोर्ट प्रैक्टिस अनिवार्य कर दी है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पिछले 20 सालों में फ्रेश लॉ ग्रेजुएट्स को बिना अनुभव जज बना देने से कई गंभीर समस्याएं खड़ी हुई हैं। न्याय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में सिर्फ किताबें पढ़ने और ट्रेनिंग लेने से काम नहीं चलता, बल्कि अदालत के भीतर का असली अनुभव ही जज को जिम्मेदारी निभाने लायक बनाता है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
‘किताबी ज्ञान और क्लासरूम ट्रेनिंग, कोर्ट के असली अनुभव की जगह नहीं ले सकते। पहले न्याय के माहौल में काम करो, समझो कि वकील कैसे बहस करते हैं, फिर जज की कुर्सी संभालो।’
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक दिन भी कोर्ट में काम न करने वाले युवा, जब सीधे न्यायिक पद पर बैठते हैं, तो उन्हें न्याय की गंभीरता और जमीनी हकीकतों को समझने में मुश्किल आती है। इसीलिए, अब 3 साल की वकालत (या लॉ क्लर्कशिप) का अनुभव अनिवार्य कर दिया गया है।
नए नियमों की अहम बातें
- सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के लिए अब कम से कम 3 साल की कोर्ट प्रैक्टिस जरूरी होगी।
- लॉ क्लर्क के रूप में जज के साथ किया गया कार्य अनुभव भी मान्य होगा।
- यह नियम भविष्य की सभी भर्तियों पर लागू होगा। जिन हाई कोर्ट्स में चयन प्रक्रिया पहले से जारी है, वे इससे प्रभावित नहीं होंगे।
- अब तक BCI रजिस्ट्रेशन और LLB डिग्री ही काफी मानी जाती थी — कई राज्यों में बिना प्रैक्टिस के भी परीक्षा देने की छूट थी।
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