यादें…

सफर  

विश्वानि देव अग्रवाल, बरेली 


यादें बहुत खुबसूरत होती हैं
न लड़ती हैं न झगड़ती हैं,
खामोशी से दिल में उतरती हैं
कभी उठती कभी सिमटती हैं,
और जब कभी आती हैं बाहर
इधर-उधर बेवजह भटकती हैं!

यादों का नशा
मदिरा से कम नहीं होता
किसी की याद में
बहकना बुरा नहीं होता,
कभी गम तो कभी
खुशी लाती हैं यादें
इनके ख्यालों में
खोना बुरा नहीं होता!

यादें तो अंदाज हैं जीने का
तकिया-रूमाल को भिगोने का
अश्रु-मोती की माला को पिरोने का
हसीन लम्हों को साथ जीने का,
कभी – कभी तो हद करती हैं यादें
वक्त देती हैं टकराके जाम पीने का!

गुज़ारिश है आपसे
रिश्ता यादों का बनाए रखना
अपने दिलो – दिमाग में
चिरागे – याद जलाए रखना
बहुत प्यारा है सफर यादों का
इस सफर को यूँ ही बनाए रखना!

(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी हैं)

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