गीत
विश्वानि देव अग्रवाल, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, बरेली
शरद पूर्णिमा की रजनी में,
करें चन्द्र शुभ दर्शन।
विंहस विंहस कर रहा गगन में
सोलह कला प्रदर्शन।।
अपनी शीतल किरणों से,
अमृत की बर्षा करता।
शीतलता हर उर में भरकर,
ताप सभी के हरता।।
ठंडक का अनुभव है करता,
आज धरा का हर जन।…….
थोड़ा तुम पुरुषार्थ करो,
खुशियों की खीर पकाओ।
रखो चाॅंदनी में चंदा की,
अमृत भोग लगाओ।।
हो जायेगी तृप्त आत्मा,
नाच उठेगा तन – मन।……..
चंचल किरणें चारुचंद्र की,
बिखरी जल थल प्रांगण।
कष्ट हरें सब विघ्न हरें,
खुशियों से भर दें हर मन।।
मुखरित खुश है आज चाॅंदनी,
साथ निभाती पवन।……..
जड़-चेतन सब आज प्रफुल्लित,
ओढ़े श्वेत चुनरिया।
इसे छुपा चोली में रख लूॅं,
चाहे हर एक गुजरिया।।
नृत्य कर रहे फूल कली सब
हंसता पूरा गुलशन।……..
रजनी पर यौवन छाया है,
निखरे पल-पल रूप।
खुले केश यामिनी नाचे,
अनुपम बड़ी अनूप।।
चंदा मुस्काता हंसता है
देख उसे हर क्षण।……..
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