12 मई, मातृ दिवस

डॉ. शिखा अग्रवाल, सेवानिवृत्त सहआचार्य (कॉलेज शिक्षा), सीकर
जिसके बिना घर,
घर नहीं होता,
स्कूल से आते ही
जिसे मन ढूंढ़ता,
जिसके आंचल तले
बालमन सुरक्षित रहता
वह मां ही तो है।
मन की हर बात जिसे कह
दिल हल्का हो जाता,
सबसे अच्छी सहेली, दोस्त,
हमराज, प्रेरक, मार्गदर्शक,
सबकी पसंद का ध्यान रखती
घड़ी की सुइयों से चलती
वह मां ही तो है।
हमारे होमवर्क,
परीक्षा की चिंता करती,
हर मुश्किल में साथ खड़ी
हर पल हौसला बढ़ाती
तुम कर सकते हो, कहती
वह मां ही तो है।
जिंदगी में नित नई
परीक्षाएं देती,
जिसकी की कोई ट्रेनिंग,
कोई सिलेबस नहीं होता,
खुद जूझती, उत्तर तलाशती
वह मां ही तो है।
बिना प्रबंधन की डिग्री
सारे रिश्ते नाते,
घर बाहर निभाती,
बिना किसी पगार
हर समय मुस्कुराती।
वह मां ही तो है।
जिसके होने से
शादी के बाद
घर की देहरी,
मायका बन जाती,
‘थोड़े दिन और रुक जाती,
मन नहीं भरा,
कुछ तो और खा लेती’
वाली मनुहार करती
वह मां ही तो है।
दरवाजा खोलते ही
‘आ गई बिटिया’
कह गले लगाती
आसूंओं से स्वागत,
आसूंओं से विदा करती
वह मां ही तो है।
मां तुम सचमुच पृथ्वी पर
अनमोल रिश्ता हो।
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