SBI को बिना मांगे ही मिल गया 8800 करोड़ का फंड, DFS ने नहीं किया मानकों का एसेसमेंट | CAG की रिपोर्ट से बड़ा खुलासा

नई दिल्ली 

देश के सबसे बड़े बैंक SBI से जुड़ा एक दिलचस्प मामला सामने आया है इस बैंक ने कोई डिमांड नहीं की; लेकिन सरकार ने बिन मांगे ही इस बैंक को 8800 करोड़ रुपए दे दिए। यह पैसा इसे वित्त वर्ष 2017-18 में मिला था। उसे यह रकम क्रेडिट ग्रोथ के लिए DFS ने दी जबकि SBI ने इसकी डिमांड ही नहीं की थी। इसके लिए DFS ने अपने ही मानकों की अनदेखी की

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यह खुलासा संसद के पटल पर रखी गई कैग की एक रिपोर्ट में किया गया है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक एसबीआई देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक है तो क्रेडिट ग्रोथ के लिए डिपाॅर्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विस (DFS) ने उसे 8800 करोड़ रुपए दे दिए। रिपोर्ट के मुताबिक DFS ने इसके लिए अपने ही मानकों पर विचार नहीं किया। CAG की रिपोर्ट के मुताबिक SBI को पैसे देने के लिए डीएफएस ने अपने मानक के हिसाब से कैपिटल की जरूरतों का एसेसमेंट भी नहीं किया। यह खुलासा कैग की 2023 की कंप्लॉयंस ऑडिट रिपोर्ट नंबर 1 से हुआ है।

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आपको बता दें कि DFS केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत काम करती है। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के इस विभाग यानी DFC की ओर से वित्त वर्ष 2017-18 में एसबीआई में क्रेडिट ग्रोथ (Credit Growth) के लिए 8,800 करोड़ रुपये का निवेश किया था। कैपिटलाइजेशन से पहले कोई समीक्षा भी नहीं की गई थी और बैंक की ओर से कोई मांग भी नहीं हुई थी। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2023 की अनुपालन लेखा परीक्षा रिपोर्ट संख्या 1 का भी पालन नहीं किया गया था।

कैग की इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि सरकारी बैंकों को पैसा देने के लिए DFS ने RBI के नियमों के अतिरिक्त बैंकों को फंड देने पर विचार किया। आरबीआई (RBI) ने पहले ही भारत में बैंकों पर अतिरिक्त 1 प्रतिशत की बढ़ी हुई पूंजी आवश्यकता निर्धारित की थी।  इसके मद्देनजर 7,785.81 करोड़ रुपये का एक्स्ट्रा फंड जारी हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 831 करोड़ रुपए  डाले, जबकि बैंक ने 798 करोड़ रुपए की ही मांग की थी, ताकि 33 करोड़  रुपए के सरेंडर से बचा जा सके।

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सरकार बैंकों को इसलिए देती है पैसा
बैंकों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से फंड जारी किया जाता है। आबीआई के प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) फ्रेमवर्क से बाहर आने और विलय के चलते कैपिटल जरूरतों को पूरा करने के लिए फंड देती है। हालांकि यह फंड एसेसमेंट के बाद ही जारी होता है। सरकार आरबीआई के नियमों और मापदंड के मुताबिक पब्लिक सेक्टर के बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ समेत कई चीजों को लेकर माॅनिटर करता है और मूल्यांकन के आधार पर फंड जारी करता है।

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