अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष
रचना शर्मा, एडवोकेट और एक्सपर्ट, महिला उत्पीड़न मामले
कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन महिलाओं के प्रति सामाजिक भेदभाव का एक गंभीर रूप है। यौन उत्पीडन की वजह से महिलाएं कार्यस्थल पर अपना पूरा योगदान नहीं दे पातीं और बहुत बार इस कारण तरक्की या नौकरी से ही वंचित हो जाती हैं। इसी कारण कार्य स्थल पर यौन उत्पीडन की रोकथाम के लिए 2013 में एक कानून लाया गया। यह कानून श्रमिक अधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस अधिकार की शुरुआत 1997 में सर्वोच्च न्यायालय के विशाखा निर्णय से हुई। एक जनहित याचिका जिसे महिला आन्दोलन से जुड़ी कुछ संस्थाओं ने दाखिल किया था। यह याचिका कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीडन से सुरक्षा के अधिकारों से सम्बंधित थी। इस पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने “कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन” पर दिशा निर्देश जारी किए। इन निर्देशों ने दो चीज़ें स्पष्ट की:
- महिला का यौन उत्पीडन महिला की निजी समस्या नहीं है। इसे रोकना सरकार और नियोक्ता की जिम्मेदारी है।
- यह जिम्मेदारी कार्यस्थल पर महिलाओं के समानता और रोजगार के अधिकारों का अटूट हिस्सा है।
- इन्ही सिद्धांतों के आधार पर महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीडन (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम 2013 लाया गया।
यौन उत्पीडन किसे कहते हैं (धारा 2 ढ)
यौन उत्पीडन का अर्थ है महिला की इच्छा के खिलाफ उसे छूना या छूने की कोशिश करना, शारीरिक रिश्ता बनाने की मांग या अनुरोध करना, यौन स्वभाव की बातें या व्यवहार करना, यौन स्वभाव की तस्वीरें और सामग्री दिखाना, घूरना या कोई भी ऐसा मौखिक, अमौखिक, सांकेतिक व्यवहार जो महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता हो यह सब यौन उत्पीडन की परिभाषा में शामिल है।
यौन व्यवहार की मांग करते हुए नौकरी में फायदा या नुकसान पहुंचाने की बात कहना या ऐसा करना भी यौन उत्पीडन है। इसके अलावा यौन प्रकृति की मांग पूरी न करने की वजह से महिला के लिए भय का वातावरण बना देना जिससे उसका कार्यस्थल पर काम करना मुश्किल हो जाए तो यह भी यौन उत्पीडन कहलाएगा।
अगर ऊपर लिखे हुए किसी भी व्यवहार को करते हुए या उसके बाद रोजगार में लाभ दिलाने की दिलासा, नौकरी से हटाने की धमकी, किसी तरह का नुकसान पहुंचाने की धमकी, तरक्की रोकना, या भयपूर्ण वातावरण बना देना यह भी यौन उत्पीडन कहलाएगा। चाहे इसे महिला के कार्य संपादन के तौर पर पेश किया जाए लेकिन यदि उस सन्दर्भ में यौन उत्पीडन हो चुका है तो इन दोनों को जोड़कर देखा जाएगा।
कानून में सरकार और नियोक्ता पर तीन स्पष्ट जिम्मेदारियां हैं
यौन उत्पीडन की रोकथाम
यौन उत्पीडन के पीछे समाज में व्याप्त वह सोच है जिसमें महिलाओं की क्षमताओं को पुरुषों से कम आंका जाता है। उनके कार्य और व्यवहार को उनके शारीरिक रूप (सौन्दर्य), उम्र, पहनावा, वैवाहिक स्तिथि के आधार पर देखा जाता है। यौन उत्पीडन को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए इस सोच को बदलना जरूरी है। इसीलिये कानून में मुख्य तौर पर नियोक्ता को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी है कि वह एक ऐसा वातावरण बनाए जहां महिला के प्रति यौनिक भेदभाव के आधार पर किए जाने वाले व्यवहारों के बारे में जागरूकता हो। ऐसी सोच और व्यवस्था को बदला जाए जो महिला और पुरुष में भेदभाव करने के अवसर प्रदान करती हो। कार्यस्थल पर स्वस्थ और सुरक्षित माहौल बनाने के लिए सरकार व नियोक्ता को समय-समय पर अपने कार्मिकों से बातचीत करना जरूरी है। यह कार्य प्रशिक्षण, सेमिनार, कार्यशाला और पोस्टर लगाकर किया जा सकता है।
निषेध यानी सख्त मनाही
कार्य स्थल पर यौन उत्पीडन की सख्त मनाही के लिए सर्विस रूल्स और पालिसी के जरिए इस पर निषेध लगाना जरूरी है। कार्मिकों को मिलने वाले संविदा पत्र में भी स्पष्ट रूप से लिखा हो कि ऐसे व्यवहार को करने का क्या परिणाम होगा। इससे हर उस व्यक्ति पर जो उस कार्यस्थल पर है पाबंदी लग जाती है कि वह ऐसा व्यवहार ना करे।
निवारण यानी शिकायत का निपटारा
ऐसा माहौल बनाना जिसमें महिला यौन उत्पीडन के मामलों में बोल सके, शिकायत कर सके। इसके लिए शिकायत समिति का गठन करना। शिकायत कैसे की जा सकती है ये जानकारी देना। जांच के दौरान शिकायतकर्ता और आरोपी की गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए निपटारे की पूरी प्रक्रिया उपलब्ध करवाना
शिकायत समिति का गठन
भारत में कामकाजी औरतों में लगभग 98% असंगठित क्षेत्र से हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए कानून में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र के लिए समिति बनाने का आदेश है।
वे सभी कार्यस्थल जहां 10 या 10 से ज्यादा लोग काम करते हैं वहां आतंरिक समिति बनाई जाएगी
इसके गठन की जिम्मेदारी नियोक्ता यानि मालिक की है। 10 से कम लोगों वाले कार्यस्थल, असंगठित क्षेत्र या घरेलू श्रमिक के मामले और खुद नियोक्ता के खिलाफ शिकायत के लिए स्थानीय समिति बनायी जाएगी। इसके गठन की जिम्मेदारी जिलाधिकारी को सौंपी गयी है | (धारा 4 व 6 एवं नियम 2 ग)
शिकायत कैसे दर्ज की जा सकती है?
जिस महिला के साथ यौन उत्पीडन हुआ है वह महिला घटना के दिन से तीन महीने के अन्दर अपनी शिकायत लिखित रूप में दे सकती है। खास परिस्तिथियों में यह समय 6 महीने तक का हो सकता है।
अगर महिला दिमागी या शारीरिक चुनौतियों की वजह से खुद शिकायत दर्ज नहीं करवा पा रही है या उसकी मृत्यु हो गई है तब भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। उसकी जगह पर उसके घर का कोई सदस्य या ऐसा व्यक्ति जिसे घटना के बारे में जानकारी हो शिकायत दर्ज करा सकता है। (धारा 9 नियम 6)
शिकायत दर्ज होने के बाद कुछ मुख्य कदम व शिकायत समिति की जिम्मेदारियां
समझौता: शिकायत मिलने के बाद आतंरिक व स्थानीय समिति महिला को समझौता करने का अवसर दे सकती है। समझौता केवल महिला की इच्छा और बिना किसी दबाव के होगा। किसी तरह का पैसे का लेन-देन समझौते में नहीं हो सकता है। (धारा 10)
जांच: अगर समझौता सफल ना हो या पीड़ित महिला शिकायत पर सीधा जांच चाहती हो तो जांच शुरू की जाएगी। जांच के दौरान समिति दोनों पक्षों और उनके गवाहों को सुनेगी। पीड़ित महिला के साथ गवाह हो यह जरूरी नहीं है। सुनवाई के बाद दोनों पक्षों को जांच रिपोर्ट की कॉपी दी जाएगी। धारा 11
अंतरिम राहत: शिकायत मिलने और पीड़ित महिला से बात करने के बाद समिति को लगे तो उसे अंतरिम राहत देने का अधिकार है। इसके तहत समिति निम्न सिफारिश अपनी रिपोर्ट में कर सकती है:
शिकायतकर्ता की इच्छा से उसका या आरोपी का तबादला
शिकायतकर्ता को तीन माह तक का सवैतनिक अवकाश
यदि आरोपी महिला के काम की रिपोर्ट बनाता है तो उससे यह कार्य वापिस लेना धारा 12
निर्णय: पीड़ित महिला, प्रतिवादी और गवाहों को सुनने के बाद समिति जांच रिपोर्ट तैयार करेगी। इसे नियोक्ता या जिला अधिकारी के पास भेजा जाएगा। (धारा 13)
कार्यवाही: रिपोर्ट में प्रतिवादी के दोषी पाए जाने पर समिति उसके खिलाफ उचित कार्यवाही करने की सलाह देगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर नियोक्ता आगे कार्यवाही करेगा।
शिकायतकर्ता के अधिकार
- शिकायतकर्ता महिला के साथ हमदर्दी का रवैया अपनाया जाएगा
- शिकायतकर्ता का यौन इतिहास, रहन-सहन, पहनावा जांच का हिस्सा नहीं बन सकता
- शिकायत दायर करने की वजह से महिला की नौकरी खतरे में नहीं पड़नी चाहिए
- महिला की पहचान गुप्त रखी जाएगी
- जांच के समय महिला को प्रतिवादी के सामने बयान देने ना लाया जाए
- तुरंत राहत के लिए महिला को अवकाश पाने, अपना या प्रतिवादी का तबादला करवाने का अधिकार है
- यदि महिला पुलिस कार्यवाही के लिए एफआईआर दर्ज करवाना चाहे तो इसमें उसकी मदद करनी होगी
- शिकायत सही पाए जाने पर महिला मुआवजे की हक़दार है
जांच से संतुष्ट ना होने पर अपील करने का अधिकार भी है
नियोक्ता की जिम्मेदारी
- कार्यस्थल पर ऐसा माहौल बनाए कि वहां काम करने वाली प्रत्येक महिला बिना किसी भय के काम कर सके
- कार्यस्थल पर खुली और स्पष्ट जगह पर या नोटिस बोर्ड पर आतंरिक समिति के सदस्यों की जानकारी और कानून के तहत की जाने वाली कार्यवाही लिखवाना
- जागरूकता लाने के लिए सेमीनार,कार्यशाला और अन्य कार्यक्रम आयोजित करना
- आतंरिक समिति के सदस्यों के लिए प्रशिक्षण आयोजित करना
- आतंरिक समिति के समक्ष शिकायतकर्ता और आरोपी पक्ष की उपस्तिथि सुनिश्चित करना
- आतंरिक समिति को शिकायत के निपटारे में जिस सूचना की जरूरत हो वह उपलब्ध करवाना
- समिति की रिपोर्ट के मुताबिक़ आगे की कार्यवाही करना
(लेखिका ‘विशाखा’ संगठन से जुड़ी हुई हैं और महिला उत्पीड़न के मामलों की एक्सपर्ट हैं और करीब बीस साल से इन मामलों को देख रही हैं। पीएलडी (पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट) और विशाखा के जरिए महिला और बाल विकास राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महिला विकास निगम बिहार, जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, अदिति महाविद्यालय, आईआईटी दिल्ली जैसे शैक्षणिक संस्थानों और सुप्रीम कोर्ट के साथ पीओएसएच पर प्रशिक्षण दिया है। भारत ने विभिन्न संगठनों और संस्थानों में प्रशिक्षण भी आयोजित किया है। इसके साथ ही केएमवीएस गुजरात, महिला समाख्या जम्मू के साथ यौन हिंसा के खिलाफ 3 कानूनों पर प्रशिक्षण दिया।)
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