नई दिल्ली
प्रसार भारती के दिल्ली में उच्च पदों पर बैठे अफसरों के एक अदूरदर्शी फैसले से देशभर में स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की आवाज़ अचानक मौन हो गई है। प्रसार भारती की स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की ये विंडो सरकार की कमाऊ पूत थीं, लेकिन अफसरों को ऐसी क्या सूझी कि उन्होंने केंद्र सरकार के पैरों में ही कुल्हाड़ी मार दी। ये लोकल रेडियो प्राइवेट FM स्टेशनों को कड़ी टक्कर दे रहे थे और केंद्र सरकार की झोली भर रहे थे।
साल 2002 में प्रसार भारती ने विविध भारती को सुबह और शाम को स्थानीय मुद्दों, बोली,भाषा और समस्याओं को ध्यान में रखते हुए देशभर के अलग-अलग राज्यों में लोकल रेडियो की करीब 40 विंडो दो-दो घंटे के लिए शुरू की थीं। स्थनीय जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए इनके नाम भी अलग-अलग रखे गए थे। राजस्थान के जयपुर में रेडियो पिंक सिटी 100.3 FM के नाम से ये लोकल विंडो काफी लोकप्रिय हो गई थी। इसी तरह जोधपुर और उदयपुर में भी ये स्थानीय रेडियो कार्यक्रम लोगों की आवाज बन गए थे। लोग इसके कार्यक्रमों के ज़रिए प्रशासन तक अपनी शिकायतें भी रख पाए रहे थे।
निजी FM के मुकाबले प्रसार भारती के इन स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की लोकप्रियता का आलम ये था कि इनके आस-पास के जिलों और यहां तक कि विदेशों में भी बड़ी रुचि के साथ सुने जाते थे। श्रोता अपने रेडियो सेट और मोबाइल फोन के माध्यम से और विदेशों में आकाशवाणी के मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से इन कार्यक्रमों से जुड़े रहे। इनके कार्यक्रमों में मनोरंजन और सूचनाओं का मिश्रण था जिसने बहुतों को आकर्षित किया। इन स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की विंडो के हर कार्यक्रम का रूप एक दूसरे से भिन्न और समाज व जीवन के हर पहलू को चाहे वो साहित्य हो या सामान्य ज्ञान, किसी महान व्यक्तित्व के जीवन से परिचय करवाना हो या देश के किसी कौने को घुमाना हो, सभी शामिल थे। श्रोताओं का जुड़ाव सोशल मीडिया के माध्यम और स्टूडियो में कार्यक्रम के दौरान आ रहे फोन कॉल से साफ ज़ाहिर था।
खरचा दो पैसा आमदनी रुपइया
आम लोगों के बीच प्रसार भारती के रेडियो स्टेशन बहुत लोकप्रिय थे; इसीलिए इन स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की लोकल विंडो को विज्ञापन भी खूब मिलते थे जिनसे सरकार को रेवेन्यू अच्छी खासी मिलती थी। सूत्रों के अनुसार अकेले जयपुर के रिडियो पिंक सिटी 100.3 FM की बात करें तो इसने सरकार को एक साल में करीब 9 करोड़ का राजस्व अर्जित करके दिया। जबकि इस स्टेशन का खर्चा करीब बारह लाख था। कमोबेश देश के अन्य स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की लोकल विंडो की भी ‘खरचा दो पैसा आमदनी रुपइया’ वाली स्थिति है। इसलिए घाटे का सौदा न होते हुए भी इन लोकल विंडो को बंद करने की सिफारिश जिन बड़े अफसरों ने की, उनकी समझ पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
प्रसारण समय बढ़ाने की जरूरत थी, पर इन्होंने आवाज ही खामोश कर दी
प्रसार भारती की स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की लोकल विंडो की लोकप्रियता और इनसे राजस्व में बढ़ोतरी को देखते हुए इनका प्रसारण समय और बढ़ाने की जरूरत थी, लेकिन अफसरों के एक फैसले ने इन लोकल विंडो की आवाज ही खामोश कर दी। स्थानीय सुर मौन हो गए और प्रसार भारती ने आंखें मूंद ली। वहीं इनमें अनुबंध पर कई वर्षों से काम कर रहे सैकड़ों की संख्या में RJ बेरोजगार हो गए। प्रसार भारती को RJ के रूप में मिला एक कलाकार का दम घुट गया। विज्ञापनों के मिलने के बाद भी एक प्रभावशाली स्थानीय रेडियो कार्यक्रम का सफर यूं अचानक रोक देना उनके लिए किसी बड़े धक्के से कम नहीं है।
दरअसल RJ और आकाशवाणी के आकस्मिक उद्घोषक और दूरदर्शन के एंकर आर्टिस्ट की श्रेणी में आते हैं और ये निर्देश हैं कि इनको बढ़ावा दिया जाए और इनके आत्मसम्मान का ध्यान रखा जाए। लेकिन यहां प्रसार भारती ने इन स्थानीय रेडियो कार्यक्रम की लोकल विंडो को बंद कर देश भर के समस्त RJ को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। उनको अब अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। वहीं निजी FM स्टेशनों को पैर पसारने का मौका दे दिया है। ऐसा सफर जो पिछले बीस सालों से चला आ रहा था वो 13 दिसम्बर, 2021 को अचानक थम गया। केंद्र सरकार का यह फैसला शहर में हो रहे सुबह-शाम के उन पलों को अपने साथ ले गया जो पल उनके एक अनोखे जुड़ाव के थे। राज्य प्रशासन से जुड़े अधिकारी, कलाकार, कवि, लेखक, साहित्यकार, विज्ञापनदाता आज सभी दुखी हैं।
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